Monday, April 6, 2009

आतंक का राक्षस


कहते हैं कलियुग में अधर्म सर चढ़कर बोलता है । यह धारणा भी सच होती लग रही है । विश्व भर में कोई ऐसा देश नही जहाँ आतंक ने पाँव न पसार लिए हों । संस्कार हीन मानव हिंसा का सहारा लेकर जगह -जगह मार -काट मचा रहे हैं । ग्रन्थ बताते हैं कि जब अधर्म का दायरा बढ़ता है तब आतंकी शक्तियां भी बढ़ जातीं हैं ।

प्राचीन ऋषि , मुनि , घोर तप के द्वारा शिक्तियाँ अर्जित करते थे , लेकिन थोडी सी साधना और जुगाड़ से राक्षस उस उर्जा को देवताओं से प्राप्त कर लेते थे । आज भी वही सब हमें दिखाई दे रहा है , विज्ञानं भी एक दिव्य शक्ति है , जिसका उपयोग आतंकी राक्षस भी कर रहे हैं । विज्ञानं जितनी खोज कर भौतिक सुविधाएँ जुटाता है , उनका उपयोग विद्ध्वंश में भी हो रहा है

रावन ने भी चाह था कि वह सम्पूर्ण विश्व को प्राप्त कर ले , उन्होंने अपने ज्ञान और साम , दाम , दंड भेद के द्वारा बहुत कुछ हासिल भी कर लिया था लेकिन विकास के बजाय विनाश ही उसका मुख्य ध्येय बन गया । ऋषि , मुनियों को प्रताणित करना , खौफ पैदा करना ही कार्य बन गया । आज भी वही इतिहास दोहराया जा रहा है । स्कूलों , भवनों और कार्यालयों पर हमले हो रहे हैं । जनता में आतंक का खौफ पैदा किया जा रहा है । हथियारों का प्रयोग कर मानवीय रक्त बहाया जा रहा है । जहाँ देखो , वहाँ उत्पात दिखाई दे रहा है ।

पूरी पृथ्वी इस पाप के आगे चीत्कार कर रही है , कहीं लोगों के लिए खाना नहीं है , कहीं पानी नहीं है , कहीं दुनिया भर के लोग अपनी रहीसी का डंका बजा रहे हैं । कहीं पृथ्वी के चक्र को तोड़ने कि शाजिश की जा रही है । चाँद तारों पर विजय पाने की होड़ में आकाश की पवित्रता को दूषित किया जा रहा है । पाप की पराकाष्ठा हो रही है । लेकिन अभिमानी लोग सर्वनाश करने पर आमदा हो रहे हैं ।

क्या !!! पृथ्वी के पालक इतने कमजोर हैं कि इन राक्षसों की उन्हें बिल्कुल परवाह नहीं है ।क्या ?? राक्षस अपनी तंत्र शक्ति हजारों मानस पुत्र पैदा कर पृथ्वी पर बिखरा देगा तब , आँख खुलेगी । अच्छा होगा कि अभी से आतंक रुपी राक्षस का नाभि चक्र भेद दिया जाय ।

पृथ्वी के देवताओ अब , जाग जाओ । सत्य , सृष्टि और सृजन की आन , बान , शान बनाये रखने के लिए तीसरा नेत्र खोलने का प्रयास करो ।

रेनू ....

4 comments:

Anil Kumar said...

शब्दों में बल है। लिखती रहें! कोई तो आपकी सुनकर तीसरा नेत्र खोलेगा!

अखिलेश शुक्ल said...

प्रिय मित्र
सादर अभिवादन
आपके ब्लाग पर रचनाएं पढ़कर हार्दिक प्रसन्नता हुई। आप इन्हें प्रकाशित कराने के लिए अवश्य ही भेजं। यदि पत्रिकाओं की समीक्षा के साथ साथ उनके पते भी चाहिए हो तो मेरे ब्लाग पर अवश्य ही पधारें। आप निराश नहीं होंगे।
अखिलेश शुक्ल्
http://katha-chakra.blogspot.com

संगीता पुरी said...

अच्‍छा लिखा है ...
पृथ्वी के देवताओ अब , जाग जाओ । सत्य , सृष्टि और सृजन की आन , बान , शान बनाये रखने के लिए तीसरा नेत्र खोलने का प्रयास करो ।
सही कहा ...

दिगम्बर नासवा said...

सुन्दर लिखा है.........
पर यह तो प्रकृति का नियम है........उत्पत्ति का अंत तोनिश्चित है.........प्रगति इंसान को राक्षस प्रवृति की तरफ ले जायेगी और फिर उसका अंत होगा.......श्रृष्टि का यह अनावत चक्र चलता रहेगा