Saturday, April 11, 2009

प्रयोगात्मक परीक्षा का औचित्य ???


सबसे पहली प्रयोगात्मक परीक्षा देने का अवसर सन १९७७ में मिला था , सिलाई -कढाई में बरती गई सफाई और करीने से ही टीचर समझ जातीं थीं कि यह काम बच्चे ने किया है या उनकी माँ ने , तब बच्चों को कुकिंग की परीक्षा देने के लिए सारे सामान के साथ स्कूल में जन पड़ता था , दलिया , खिचडी , सूप , फ्रूट सलाद और खीर बनाने के लिए दी जाती थी , किसी सखी से ट्रे , कहीं से बर्तन और किसी से दलिया लेकर हमारी प्रयोगात्मक परीक्षा सम्पन्न होती थी ।


ढेर सारा टेंशन , दोस्तों की सच्ची पहचान इसी समय में हो जाती थी , १९८२ तक यही क्रम चलता रहा , कभी कला संकाय में प्रैक्टिकल , कभी मनोविज्ञान विभाग में प्रयोगात्मक परीक्षा । अतिथि टीचर की सेवा में अपनी अध्यापिका को निरंतर लगे देखा जाता था । एक हौआ सा खडा किया जाता था उस समय ।


कुल मिलकर एक बात समझ में आई कि अतिथि टीचर की सेवा पर शिक्षा -विभाग खर्च करता है और नम्बर देने का काम तो घरेलु टीचर ही करती है , फ़िर इन परीक्षाओं का क्या औचित्य है ?? बरसों से लकीर पीटी जा रहीं है । जबकि असलियत यह है कि अतिथि टीचर सिर्फ़ हस्ताक्षर करने के लिए ही आता है । इस धन का प्रयोग शिक्षा विभाग किसी और काम में ले सकता है ।कॉलेज स्तर पर भी यही सब होता है । प्रैक्टिकल में कोई फ़ेल नही होता , जब लिखित परीक्षा में कोई परीक्षार्थी पास नही हो पता तब , प्रयोगात्मक परीक्षा के नम्बर बढ़ा कर उस व्यक्ति को पास कर दिया जाता है । तो , इस तरह की पढ़ाई का क्या मतलब ? यह काम धन और बल दोनो तरीके से सम्पन्न किया जाता है ।

जब विद्यार्थी पूर्ण रूप से पढ़ाई में समर्पित नहीं हैं तब , इस खोखली शिक्षा का क्या औचित्य ? परीक्षा परिणाम तक तय तरीके से पूर्ण हो जाते हैं । दूर दराज के स्कूल , कॉलेज में बैठे प्रधानाचार्य कभी -कभार ही अपनी नौकरी पर जा पाते हैं , बाकी समय किसी पसंदीदा शहर की महमानी भोग रहे होते हैं , कभी बहाना होता है मीटिंग का , कभी कुछ और । विद्यार्थी फीस जमा कराने आते हैं या परीक्षा देने आते हैं , वह भी बाजार में बिकने वाली संक्षिप्त उत्तर -पुस्तिका से पढ़कर । वह लोग कभी भी किताबें देख तक नही पाते कि कोर्स में क्या -क्या पुस्तकें हैं । तब हम कैसे मान लें कि बच्चों का भविष्य उज्जवल होगा ।

सरकारी स्तर पर जब छान -बीन चलती है तब टीचर की कमी का रोना रोया जाता है , जब टीचर आ जाता है , तब विद्यार्थी ही गायब हो जाते हैं । कुल मिलाकर शिक्षा पद्यति में बहुत अधिक बदलाव की आवश्यकता है । वरना , यूँ ही , सब पास होते रहेंगे ।

रेनू ....


2 comments:

ravishndtv said...

सार्थक बहस छेड़ दी आपने।

Renu Sharma said...

is sarthak bahas main aap sabhi ka swagat hai .
renu ...