Monday, July 7, 2014

अम्मा का बीजना

सत्तर के दशक में बाबा और दादी घर के आँगन से लेकर बैठक तक अपनी उपस्तिथि दर्ज कराते रहते थे , बाबा कभी कचहरी जाते तो , कभी कोर्ट ,उनके जी से जाने कितने जंजाल अटके हुए थे , कभी दूध लेन वाले सिब्बन मियां के बारे में पता चलता कि बाबू जी !! सिब्बन आपके खेत जबरदस्ती जोत रहा है ,कभी पता चलता अपने ही किसी परिवारी ने जमीन पर दखल दे दी। तीस चालीस के दशक में बाबा ने आस -पास सभी जातियों को रहने के लिए जगह दे दी थी , धीरे -धीरे पूरा गांव ही बस गया ,अब , सब सयाने हो गए हैं , खाली पड़ी जगह पर कब्ज़ा चालू हो गया है ,उन्हें समझते और समझाते रहे , नहीं माने तो मुक़्क़दमे लड़ते रहे लेकिन आज तक कुछ न हो सका।

दादी इन सब कामों में दखल नहीं देतीं थीं , मुझे याद है घर का सबसे पहला बड़ा कमरा हॉल कहलाता था दादी उसे पौरी कहती थी , उसमें दादी का बड़ा सा पलंग बिछा रहता था , एक तरफ बड़ा सा तखत बिछा था , दो कुर्सी थीँ लकड़ी की जो , जाने कितने वर्षों से सबका बोझ सह रहीं थीँ। दादी के सिरहाने की तरफ ऊपर जाने का रास्ता था , थोड़ा पश्चिम में बाबा की बैठक का दरवाजा खुलता था , सामने बड़ा सा दरवाजा था जो दो दरवाजों के साथ खुलता था , नक्काशीदार दरवाजा जिसमें भीतर सुरक्षा के लिए लकड़ी के बड़े -बड़े पत्ते लगे थे , तीन कुण्डियां थीँ। भीतर दरवाजे के पास ही एक कुण्डी में डोरी बंधी रहती थी , वहां एक आदमी जमीन पर उकड़ूँ बना बैठा रहता था और धीरे -धीरे डोरी को हिला ता रहता था। दादी की जब इच्छा होती बात करता वरना चुपचाप बीड़ी पी सकता था क्योंकि दादी खुद भी बीड़ी पी लेती थीँ।

ऊपर डोरी एक बड़े से बीजने से बंधी थी जो, दादी के पलंग के आस -पास हवा फैलाता था , उस पंखे का आकार करीब दो मीटर था , रंग -बिरंगे कपडे से बना था , उसमें सुन्दर डिजाइन बनी हुई थी ,एक बार दादी अपने पीहर गई थीँ तो उनकी भाभी ने उन्हें गिफ्ट में बीजना दिया था। तब से उसको चलाने के लिए एक बाँदा रख लिया था ,वेतन के रूप में भर पेट खाना और सेर भर अनाज। हम सब उस पंखे की हवा मैं जाकर सोते थे कभी जब हरी शंकर हवाबाज नहीं आता तब , हमारी ड्यूटी होती थी बीजना हिलाने की , वरना दादी छोटे पंखे से खुद की ही हवा कर लेती थी , तब , सब उनके पलंग पर घुस जाते अम्मा !! हमारी हवा करो , दादी कई घंटों तक पंखा हिलाती रहती।

जब भी कोई दादी से मिलने आता , तब दादी उसे अनाज भरकर दे रही होती या कपडे देती रहती , शाम होते ही चबूतरे पर दूसरा पलंग बिछ जाता , पानी का छिड़काव हो जाता , दादी अपना हुक्का लेकर विराजमान हो जातीँ। गांव की महिलाएं अक्सर दादी से मिलने आया करतीँ थीँ , पूरे गांव की खोज खबर उन तक पहुँच जाती थी ,दादी !! बाबा को उलाहने मारा करती थी अरे !! जिंदगी भर इसी कचहरी में लगे रहिये , बिटिया बड़ी हो रही है ,ब्याह कर दो , मैं , मर जाउंगी तब करोगे , बाबा !! हर बार बोलते अगली साल कर देंगे और जाने कितने साल निकलते चले गए , अम्मा को पेट की तकलीफ हुई और एक साल के भीतर ही अम्मा इस दुनियां से चली गईं।

बीजना अपनी जगह लटका रहा वर्षों तक , अब ,बिजली आ गई है , कभी जब दादी के पलंग पर बैठती तो ऊपर शांत लटके पंखे पर नज़रें अटक जातीँ ,बीजना उतर कर स्टोर में चला गया , चूहों ने कुतर लिया फिर जाने कहाँ चला गया ,एक भीनी सी स्मृति शेष है , दादी के साथ बीजना भी यादों में समाया है।

रेनू शर्मा    

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