Friday, July 25, 2014

भीड़ में एकाकी

पहाड़ी पर चारों तरफ बिजली की जगमगाहट हो रही है , ऐसा लग रहा है मानो आसमान के तारे उस पहाड़ी पर उतर आये हों , लयबद्ध हो जुगनुओं की तरह लुक छिपी खेल रहे हैं। नीचे सड़क पर हम चार पहिये की गाड़ी में सरपट दौड़ रहे हैं , जल्दी से उपर पहुंचना चाहते हैं , पहाड़ी का आकर्षण जैसे अपनी ओर खींच रहा है , लेकिन वसुधा जैसे कुछ देख ही नहीं पा रही है , जाने कहाँ , वीराने में घूम रही है उसे न सबके साथ होने का अहसास है और न इस बात का ज्ञान कि हम कहाँ जा रहे हैं , बस अपने ही ख्यालों में डूबी सब कुछ देख रही है , इतने सरे व्यक्ति हैं , सब आपस में बात कर रहे हैं , गानों की मधुर ध्वनि आनंद बढ़ा रही है , बच्चे मस्ती कर रहे हैं , लेकिन वसुधा सबके साथ हंसती हुई भी निराश है , हम सबसे कहीं दूर है , भीड़ में होते हुए भी अकेली है अपने भावों और विचारों के साथ है।

ऐसा एकाकीपन हर किसी के जीवन में कभी न कभी आता ही है , व्यक्ति को अपनी स्तिथि की अनुभूति भीड़ से अलग होने पर ही होती है , यह कोई मनो रोग नहीं है लेकिन मानसिक अस्वस्थता की शुरुआत कह सकते हैं , व्यक्ति जब किसी वस्तु या व्यक्ति से अत्यधिक दूरी या समीपता कर लेता है तब , बदले में मिले अपमान , उपेक्षा या कमी को व्यक्ति सहन नहीं कर पाता है और धीरे -धीरे मानसिक उथल-पुथल का शिकार हो जाता है , व्यक्ति एकाकी विचार शीलता की ओर अग्रसर हो जाता है।

कभी , व्यक्ति भीड़ भरे रास्ते , पार्क या स्टेशन पर सब लोगों से बचता , झुकता , मुस्कराता ,क्रोधित होता ,गुमसुम सा अपने विचारों में डूबा अपनी मंजिल की ओर चलता जाता है , रास्ते में कौन मिला , क्या बात हुई उसे कुछ भी याद नहीं रहता क्योंकि भीड़ में भी वह अकेला ही था। कभी , हम कोई काम कर रहे होते हैं लेकिन हमारा दिमाग कहीं और चला जाता है , मस्तिष्क कुछ और सोचने लगता है , हालाँकि हम अपना काम सुचारू रूप से कर रहे होते हैं उसी समय हम कुछ और भी सोच रहे होते हैं , जब , ध्यान भंग होता है तब ,समझ आता है कि हम एक साथ कई बातें सोच रहे थे , अत्यधिक आध्यात्मिक , संवेदनशील ,काल्पनिक ,विचारक ,कलाकार व्यक्ति अक्सर इस स्तिथि का शिकार हो जाते हैं , जहाँ ,वह व्यक्ति सबसे अलग हो जाता है वहीँ , कुछ क्रियाशील हो काम कर रहा होता है , व्यक्ति स्वयं को ध्यानावस्था में पहुंचा देता है जो किसी अन्य के वश का नहीं।

ऐसा अकेलापन जुड़ने का काम भी करता है जो , आत्मा से जोड़ता है , प्रकृति ,विचारों और कला से जुड़ने में सहायक है , हर पल इस अवस्था में रहना मानसिक अस्वस्थता होती है , व्यक्ति वास्तविक अवस्था में आना ही नहीं चाहता , कल्पनाओं में ही जीना चाहता है। कभी आनंद देता है ,कभी हताशा , निराशा को जन्म देता है , मन को नियंत्रित कर भीड़ में सबके साथ रमण करना चाहिए , संगीत , अच्छा भोजन , सज्जन व्यक्तियों का साथ व्यक्ति को नई ऊर्जा देता है।

अत्यधिक एकाकी जीवन जीने वाला व्यक्ति स्वयं से बातें करने लगता है , उसे लगता है जैसे उसका कोई नहीं , किस से अपनी बात कहे , भरोसा नहीं कर पाता किसी पर , दोस्ती का अभाव रहता है , सब लोग समझते हैं व्यक्ति पागल हो गया लेकिन ऐसा नहीं है , अधिक क्रोध में भी तो व्यक्ति स्वयं से ही बात करता है ,गलियां देता है ,धिक्कारता है , कोसता है इस तरह स्वयं को हल्का करता है। किसी व्यक्ति की हत्या करना ,मारना आदि विचार भी एकाकीपन की देन होते हैं , मस्तिष्क कुछ अन्य विचार को ग्रहण नहीं कर पाता ,व्यक्ति की सोचने समझने की शक्ति क्षीण हो जाती है , यह स्तिथि भयानक है ,रोगी का उपचार कराना चाहिए। भीड़ में रहते हुय भी व्यक्ति यदि एकाकी होने लगे तो चेतना को जाग्रत करने का प्रयास करना चाहिए।

रेनू शर्मा 

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