Wednesday, July 23, 2014

चिरैया

बहुत पहले से सोचा करती थी कि लड़की इतनी लाचार क्यों होती है कि अपनी बात किसी से नहीं कह पाती चाहे वो उसकी माँ ही क्यों न हो , जब किशोर होती है तब , माँ -पिता , भाई -बहिन सबके साथ इतनी घुली -मिली रहती है कि किसी से दूर होने का सोच ही नहीं पाती ,जैसे जिंदगी एक दूसरे में पिरोकर माला बना दी गई हो ,  जहाँ एक भी मनका टूट नहीं सकता , बिखर नहीं सकता ,जिंदगी हाथ से रेत की तरह फिसलती है।  जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही ससुराल नाम का भूत सताने लगता है , ऐसा नहीं है कि कोई बैर -भाव हो जाने क्यों भारतीय समाज में ससुराल को हौवा बना दिया गया है। जहाँ , सास का डर , नन्द का रुतवा , जिठानी की ठसक को सँभालने की तयारी करनी होती है ,पति को देवता के रूप में एक सिंहासन पर बिठाया जाता है जिसके सामने लड़की को हर हाल में सलाम ठोकना ही है , तभी सामंजस्य हो पायेगा , जाने कैसे चलन हैं , शादी के बाद लड़की अपने ही माँ -पिता के लिए बेगानी हो जाती है , अति सम्बेदन शील रिश्ता हर व्यक्ति निभाता है।

शादी के बाद लड़की कितनी ही बार माँ के पास चली जाय कभी , उसकी तसल्ली की बात नहीं कही जाती ,सोच लेते हैं , आ जा रही है , रोना नहीं रो रही ,तो सब ठीक होगा , लड़की जीवन भर घुटती ही रहती है , कोई नहीं होता जो दो शब्द पूछे कि बीटा कोई तकलीफ तो नहीं , हम तुम्हारे साथ हैं , माँ ,तो हर हाल में रिश्तों को निभाने की ताकीत करती रहती है , उसे पता है हर घर में कुछ तो होता ही है , उसके लिए क्या बात करना , उधर पति घीरे -धीरे समझ जाता है नौकरी करती है तो , अच्छी बात है चार पैसे घर में आते हैं पति महाशय अपने शौक जीवित रख सकते हैं , घर में भौतिक साधन बटोरे जा सकते हैं , यदि घर में काम करने की ही नौकरी है तो , पत्नी एक अाया या महरी से अतिरिक्त कोई सम्मान नहीं पा सकती। बच्चे भी समझ जाते हैं कि माँ को इससे अधिक मान क्या देना , पति यदि शौक़ीन हैं तो , फिर क्या कहने , दुनिया जाये भाड़ में उन्हें बस अपने काम से मतलब।

स्त्री -पुरुष का रिश्ता शारीरिक रिश्ते से अधिक नहीं समझ आता , मानसिक भावनाएं तो जैसे कहीं खो जाती हैं , हालाँकि इस सबके विपरीत भी लोग होते हैं मैं , उसे नहीं नकार रही।  शराबी पति हो तो , पत्नी को हर रात घने जंगल में जैसे गुजारनी पड़ती है , कभी डर कि इसकी चिल्लाहट पड़ोसी न सुने ,बच्चे दुखी न हों , सामाजिक अपमान का भय सालता ही रहता है। पत्नी यदि काम से वंचित कर दे तो , रात भर गलियों का सिलसिला चलता रहता है , यदि पति हिंसक हुआ तो , हाथ चलाने से भी परहेज नहीं करेगा ,उस पल स्त्री पिंजरे में बंद किसी कबूतरी से कम नहीं होती , यह नज़ारा किसी मामूली परिवार का ही नहीं , एक पढ़े -लिखे परिवार का भी हो सकता है , भारतीय समाज में पढ़े -लिखे लोग ही इस तरह की नारकीय जिंदगी जीने को मजबूर हैं ,पति को पता है कि भाग कर कहाँ जाएगी ? शारीरिक और मानसिक स्तर पर पूरी तरह से स्त्री को निचोड़ा जाता है। रोज मर्रा की बातों का जिक्र किसी से नहीं हो पाता क्योंकि आत्म सम्मान का भय बना रहता है।

क्या , एक परिवार की खुशियों का ध्यान रखना सिर्फ पत्नी का ही फर्ज है , अमर्यादित व्यवहार करना पति अपना अधिकार समझता है , इसमें पति के घर वाले भी अहम भूमिका निभाते हैं , या तो , पति घर की जिम्मेदारी से भागना चाहता है , घर का बंधन उसे रास नहीं आता , आजाद ख्याल होने के कारण सब कुछ पचड़े में पड़ना सा लगता होगा , व्यसन की पूर्ति चाहिए लेकिन आजादी के साथ। लेकिन इन विचारों से कब तक स्त्री घायल नहीं होगी ? स्त्री भी कुछ पलों का सुकून चाह सकती है , भारतीय समाज में तो यह संभव सा नहीं लगता , बेटियों को जन्म लेते ही बोझ समझा जाता है , हर पति यही कहता है कि सब बीवी बच्चों के लिए ही तो करते हैं , जबकि पति खुद लालच से घिरे रहते हैं , घर और बच्चे यदि सम्भले हैं तो पति के कारण यदि बिगड़े हैं तो , पत्नी के कारण। सारे इल्जाम स्त्रियों पर लगाये जाते हैं।

माँ -बाबा की चिरैया जिसे फुदकने से लेकर पंख आने तक सुरक्षित रखा गया , कभी आँगन में फुदकी तो लाड से गले लगा लिया , चिरैया है एक दिन उड़ जाएगी , कहकर अपना कलेजा शांत कर लिया , बेटी के पैदा होते ही उससे दूर होने के लिए स्वयं को तैयार करते रहे। प्यार का ये सूखा रस जल्दी ही मिट जाता है। अब , उसे पैरों पर खड़ा होना सीखा दीजिये ,जिससे अपना नीड खुद बना सके , संघर्ष मय जिंदगी से निकालकर उसे स्वतंत्र आँगन दीजिये जहाँ वो , आजादी से उड़ सके। तब , चिरैया एक बेटी के रूप में साँस ले पायेगी।

रेनू शर्मा   

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