Monday, July 28, 2014

आत्महत्या क्यों ?

श्री मदभगवद गीता में लिखा है -आत्मा अजर अमर है ,इसे न कोई मार सकता है ,न कोई जला सकता है। आत्मा एक चेतना पुंज है जो व्यक्त और अव्यक्त रह सकती है , आत्मा सत्य है , पवित्र है और शाश्वत विध्यमान है और भी बहुत कुछ।  भारत के हर व्यक्ति को यह घुट्टी में पिला दिया जाता है , संस्कृति और संस्कार एक दूसरे मैं समाये हैं , खेतों में काम करने वाला अनपढ़ व्यक्ति भी अज्ञानी नहीं है वह , भारतीय संस्कृति की रूह को जानता है। इसके साथ ही वे यह भी जानते हैं कि आत्महत्या करना पाप है फिर भी कर लेते हैं , मानव जीवन सर्व श्रेष्ठ है फिर भी , जीवन के संघर्षों से घबरा कर जीवन को नष्ट ही कर डालते हैं।

इस संसार में जीव योनि में मानव ही अपनी आत्मा के उत्थान के लिए आध्यात्मिक प्रयास करता है ,वाल्मीकि रामायण में बताये पुष्पक विमान का वैज्ञानिक प्रयोग ही आज हमें , हैलीकॉप्टर , जहाज और अन्य रूप में दिखाई देता है , मानव जीवन ही हमें ईश्वर के दर्शन कराता है जिसे हजारों रूपों में पूजा जाता है , अंतरिक्ष से लेकर आत्मा तक का ज्ञान हम मानव रूप में ही कर सकते हैं फिर क्यों , इंसान आत्महत्या करने पर विवश होता है , हम अपनी चेतना का स्तर क्यों नहीं सुधार पाते ?

मानव जीवन विविधताओं से भरा हुआ है , हर मानव के जीवन में स्तिथि भिन्न होती है कहा जाता है कि हर व्यक्ति अपने पूर्व जन्म के अनुसार ही वर्तमान जन्म पाता है और इस जीवन के सुख -दुःख का अनुभव करता है , फिर हर व्यक्ति की चेतना का स्तर भी भिन्न होता है , उसकी निर्णय क्षमता भी भिन्न होती है , हमारी नैतिक और मानसिक चेतना की उच्चता जितनी होगी उसी के अनुरूप हमारा जीवन होगा। यदि हम कोई पाप कर्म करते हैं तो यही संसार दोखज है जहाँ बार -बार जन्म लेना पड़ता है और जीवन की उथल -पुथल को झेलना पड़ता है।

हमारे बुरे कर्म , गलत आदतें , बुरा साथ , अशिष्टता , गलत निर्णय , अज्ञानता ही व्यक्ति को गलत राह पर ले जाती है , जो व्यक्ति अविवेकी होते हैं , नकारात्मक सोचते हैं , आत्मविश्वास की कमी होती है , अहंकारी होते हैं , अतिमहत्वकांछी होते हैं वे लोग ही आत्महत्या जैसे आत्म घाती पाप को करनेवाले अपराधी होते हैं। उनके मस्तिष्क में आत्महत्या का विचार आया तो उसी पर सोचते रहेंगे और कुंठित होकर अपराध कर बैठते हैं। उन्हें कोई रिश्ता ,कोई दोस्ती ,कोई जिम्मेदारी समझ नहीं आती। विवेकशून्य ,एकाकी ,मानसिक व्याधि से ग्रसित व्यक्ति यह अपराध कर लेते हैं।

एक अटल सत्य यह भी है कि यदि साथ अच्छा हो तो , मृत्यु को भी टाला जा सकता है ,यही पुण्य का आदान -प्रदान होता है , कैसे हम बीमार व्यक्ति को अच्छे विचार , भावनाओं और सकारात्मकता की ओर ले जायँ ?मानव जीवन का अर्थ समझा सकें , हम एक दूसरे इंसान से किसी न किसी रूप से जुड़े रहते हैं फिर दूसरे की पीड़ा ,दुःख ,दर्द , आह ,व्यथा , मानसिक आघात को क्यों नहीं समझ पाते ? घर -परिवार के लोग थोड़ा समय दें , एकाकीपन दूर करें , योग ध्यान का रास्ता अपनाएं ,सदाचार को आत्मसात करें तो , शीघ्र ही बचाव संभव है। एक सर्वे से पता चला है कि व्यक्ति की क्रोधाग्नि इतनी प्रबल हो जाती है कि वह मरने के लिए जलना पसंद करता है ,यदि दुर्भाग्य से बच गए तो जीवन भर पश्चाताप की अग्नि में जलते ही रहना पड़ता है। सामाजिक , मानसिक प्रताणना झेलनी पड़ती है वो अलग। शिक्षित लोग पीड़ा रहित मृत्यु का चुनाव करते हैं ,कुछ लोग पीड़ा दायक स्तिथि को चुनते हैं उनकी क्रूरता और मानसिक असमान्यता का परिचय उसी से लग जाता है , इन स्तिथियों में से निकलने के लिए व्यक्ति को योग की अग्नि में अपने शरीर को तपाना चाहिए।

गलत आध्यात्मिक मार्ग भी व्यक्ति को आत्महत्या के लिए सहायक हो सकते हैं इसमें कोई आश्चर्य नही होना चाहिए , मृत्यु के प्रति आकर्षण भी एक कारण है ,वह पल भी , अनंत आनंद को देने वाला हो सकता है यदि मृत्यु स्वभाविक हो तो , कोई युवा जानबूझकर प्रयास करेगा तो आत्महत्या कहलायेगा जो अपराध है। उस अनुभव को जीवित रहते हुए ध्यान के माध्यम से पाया जा सकता है , संसार की हर समस्या का समाधान , हर हार की जीत , हर पीड़ा का निवारण हमारे ही पास है जरूरत है केवल मानसिक चेतना के विकास की , आत्मविश्वास की। जीवन एक पुष्प है इसे सुगन्धित बना रहने दें ,सद्मार्ग का अनुशीलन करें।

रेणुशर्मा 

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