Monday, September 14, 2009

विकारों से पनपते गे ..

जब हम मनोविज्ञान की बात करते हैं , तब मनोवैज्ञानिक असमानता की बात भी आती है जो सामान्य से इतर होती है । असमान्यता के हजारों कारण दिए जा सकते हैं , उन्हीं में जिक्र आता है बाल अपराध का , जो बच्चे विशेष रूप से स्कूल नही जाते या झुग्गी -बस्ती में रहने वाले होते हैं । ऐसा माना जाता है कि गरीबी व्यक्ति से अपराध करा देती है , यह पूर्ण सत्य नही है । व्यक्ति अपने मनोविकार के कारण ही अपराध कर पाता है । धन -वैभव में पले व्यक्ति भी अपराध करते हैं ,वहां तो कोई गरीबी नही होती फ़िर क्यों अपराध कर दिया ? शिक्षित व्यक्ति भी अपराध कर देते हैं क्योंकि मानसिक रूप से वे विक्रत हो जाते हैं ।

हमारा ध्येय था गरीबी रेखा से नीचे या गरीब बच्चों का यौन शोषण या उनकी मनोवृत्तियों को जानना , जिन स्तिथियों में वे अपराध कर बैठते हैं । अधिकांश बच्चे तो स्कूल ही नही जाते , वे शहर , गाँव , मौहल्ले की गलियों में कचरा कुरेदते रहते हैं । जो मिल जाता है , उसे बेचकर बीडी , सिगरेट पीते हैं । नशा करते हैं , फ़िल्म देखते हैं अगर इच्छा हुई तो घर में दस बीस रुपये दे दिए नही तो नही । गंदे फटे पुराने , मैले -कुचैले कपडे पहनना उनकी आदत होती है । साथ रहने वाले बच्चे लड़के ही होते हैं , किसी दोस्त से यदि पता चल जाय कि अंग्रेजी फ़िल्म लगी है तब अवश्य ही जाना है । उन्हें किसी कानून की परवाह नही होती ।

सूनसान सड़क के किनारे या किसी निर्जन पार्क में , पुरानी बिल्डिंग के अन्दर कहीं भी अपने दोस्तों के साथ सम्लिंगीय सम्बन्ध स्थापित करना भी इनकी आदत बन जाता है । अपनी उम्र से छोटे बच्चे पर धाक जमाना , दादागिरी दिखाना , मारना- पीटना , पैसे छीन लेना आदि हरकतें करते हुए , छोटे बच्चे को अपना शिकार बना लेते हैं । एक बार जाल में फंसने के बाद वह बच्चा पूरे ग्रुप का शिकार बन जाता है । भागने पर उसे ढूँढा जाता है , माता -पिता से शिकायत का डर दिखाकर या पुलिस पकड़ लेगी वहां और मार लगेगी ऐसा बताकर उसे भयभीत कर दिया जाता है । इस तरह इन राहों पर भटकता बचपन अपराध की दुनिया में शामिल होने के लिए तैयार होने लगता है ।

ये तो , गरीब और अशिक्षित बच्चे थे लेकिन क्या बजह होती है, जब अच्छे घरों के बच्चे भी घनिष्ट दोस्ती की आड़ में नशे का सेवन तो करते ही हैं , साथ ही यौन शोषण भी करते हैं । दस से सोलह साल के बच्चे इस प्रवृत्ति में लिप्त पाए जाते हैं । जब किसी नशेडी अधेड़ व्यक्ति को इन बच्चों के बारे में पता चलता है तब , शराब और नशे के लालच में, वो भी, इन्हें अपना शिकार बना लेता है ।

अब बात करते हैं , सोलह से बाईस साल के युवा , शिक्षित बच्चों की । अधिकतर काम के उद्वेग को समझ ही नही पाते और अनियंत्रित हो बुरी आदतों का शिकार हो जाते हैं । इन स्तिथियों में सहायक होता है बच्चे का अलग -थलग रहना , माता -पिता का व्यवहार , दो युवा बच्चों का अधिक समय तक साथ रहना , एक दूसरे को छूना , तब , सम्लिंगीय होने अधिक समय नही लगता है ।आधुनिक संचार साधनों से हर युवा वाकिफ होता ही है ।
मजाक से शुरू हुआ यह सिलसिला, अतृप्त वासनाओं को शांत करने का साधन बन जाता है ।ये हालात किसी शहर के ही नही हैं , हमारे गाँव भी इस जाल मैं फंस चुके हैं । वहां उन लोगों को अधिक सुरक्षित साथ मिल जाता है क्योंकि दो सहेलियों पर कोई भी उंगली नही उठा पाता। गाँव के बच्चों के तो खेल भी कुछ अजीब होते हैं , भुस के ढेर पर कूदना , बम्बे मैं नहाना , खलिहान पर सोना , रात भर पास के गाँव मैं रास देखने जाना, घर से बाहर ही उनका अधिकाँश समय निकलता है ।कुछ नही तो , गाँव भर के कुत्तों को इकठा कर उनकी कुस्ती कराते हैं । इस तरह के मनोविकार जब , किसी व्यक्ति को प्रभावित करते हैं तब , ह्त्या जैसे जघन्य अपराध भी करा डालते हैं । जब दो लड़कियां शादी करने का फैसला करतीं हैं तब , मीडिया भी सक्रीय हो जाता है , उस ख़बर पर नज़र जम जाती है ।
हमारा समाज स्वतंत्रता के अभिशाप को झेल रहा है , पाश्चात्य का खुलापन हमारी संस्कृति मैं जायदा शक्कर की तरह घुल नही पा रहा है । माता -पिता चिंतित हैं , समाज भी घुला जा रहा है , क्या होगा ? हमारी सरकारें किसी भी ठोस निर्णय से पलायन करती दिखाई देतीं हैं ।
नई पीड़ी को गरल पिलाया जा रहा है , मनोविज्ञान तो हमें समझा देता है कि अपराधों के कारण -लक्षण क्या हैं ? लेकिन अपराधियों के लिए कोई व्यवस्था नहीं । खुलेआम घुमते रहते हैं । जाने क्या बात होती है उन लोगों मैं जो इस तरह का कदम उठा लेते हैं । हम तो समझते हैं कि मानसिक रूप से विकृत व्यक्ति ही ऐसा कर सकता है । हमारे समाज के लिए विष बेल उग रही है । जिसे अब तो हमारा संविधान भी सहारा दे रहा है ।
हम लाख चाहने पर भी दुनिया से बुराई को ख़त्म नही कर सकते , लेकिन एक प्रयास कर सकते हैं कि लोग सद्मार्ग पर चलें तो , बहुत कुछ बदल सकता है । इसी कामना के साथ ...
हमारे रिसर्च का निष्कर्ष ।
रेनू .....


2 comments:

Udan Tashtari said...

सद्मार्ग पर लाने का प्रयास तो किया जा ही सकता है.

हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ.

कृप्या अपने किसी मित्र या परिवार के सदस्य का एक नया हिन्दी चिट्ठा शुरू करवा कर इस दिवस विशेष पर हिन्दी के प्रचार एवं प्रसार का संकल्प लिजिये.

जय हिन्दी!

दिगम्बर नासवा said...

किसी भी VIKAR को समझ और SAHANSHEELTA द्बारा दूर किया जा सकता है CHAHE वो अपने AAS पास हो या अपने PARIVAAR में ........... मुझे लगता है आज ABHIBHAAVKON को JYAADA JAAGROOK होने की JAROORAT है और BADALTI HUYI SAMAAJIK STHITI को PAHCHAANNE की JAROORAT है