Monday, July 20, 2009

एक उम्र के बाद ....


आसमान पर बादल घिरते आ रहे हैं , कहीं काली घटायें जमघट लगाकर विकराल रूप धारण कर रही हैं , कहीं आपस में झगड़ कर दूर हुए बच्चों की तरह सफ़ेद चमकीले बादल श्वेत कपास से इधर -उधर बिखर रहे हैं । दूर पहाडी पर मेघ बरस रहे हैं , पहाड़ और ऊँचा होता जा रहा है , बूंदों और फुहारों के सम्मिलन से लगता है , मानो पड़ी पर दुल्हन घूंघट ओढ़कर बैठी है । खेतों के बीच से लहराती काली नागिन सी पटरियों पर ट्रेन सरपट दौड़ रही है , कभी इंजन से सीटी की आवाज आती है , कभी धडधडाते पहियों की सरगम सुनाई देती है । बिजली के तारों पर पंछी आकर बैठते हैं , कभी दूर लहराते खेतों में गाय चरती दिखती हैं , कभी बूडे बरगद के नीचे ग्वाला बकरी चराता दिखता है ।

ट्रेन की खिड़की पर उत्तमा निगाहें गडाये बैठी है , आज समझ सकी है , दुनिया गोल है । यकायक मुझे घूरकर देखती है सुनो !! सुनयना !! हमारे साथ खेत , पहाड़ , घर , पेड , बादल सब गोल घूम रहे हैं । अरे !! देखो तो , मैं , खिड़की से झाँककर देखती हूँ , हाँ , तुम ठीक कहती हो , मैं , समझ गई । हमारी ट्रेन आगे बढ़ रही है और सब कुछ पीछे छूट रहा है । समझी !! ठीक वैसे ही, जैसे हम जीवन के कुछ अनमोल पल बिता चुके हैं । हाँ , पता है उत्तमा ।

सुनयना !! मैं एक बार फ़िल्म देख रही थी , अपनी दोस्त के साथ , एक युवा जोड़ा हमारे साथ ही बैठा था , वे लापरवाह थे , या कहें कि आजाद थे , या कहें कि निसंकोची थे , या निर्लज्ज कह सकते हैं । जब -जब कोई रोमांटिक सीन आता ,वे लोग एक दूसरे में समाने का प्रयास करते , आस -पास के सभी लोग असहज हो रहे थे , पर वे इसके लिए चिंतित नही थे ।

सुनयना !! में सोच रही थी उन्हें यह सब नही करना चाहिए था । इनका घर भी तो होगा , हो सकता है अभी छुप कर मिलते होंगे , तब तो ग़लत ही था । मैं उनके इस व्यवहार से घबरा रही थी ।

हाँ , तुम्हें लग रहा होगा युवा हैं , कहीं कुछ ग़लत न कर बैठें । पर , उत्तमा !! आज के युवा सोचते हैं कि जो पल साथ जीने को मिले हैं , उनका भरपूर मजा लो , अब , विचारधारा बदल गई है ।

उत्तमा !! तुम उस युवती की जगह होतीं तो , क्या करतीं ? बताओ ? मैं , पहले तो फ़िल्म देखने नही जाती , अगर जाती तो , कायदे से बैठती , जब कुछ रोमांटिक चल रहा होता तो , कहती चलो बाहर चलें , चाय पीकर आते हैं और वापस नही आती । अगर बैठी भी रहती तो , मानसिक स्पर्श का पान करती साँसों की आह ! से उन्हें पागल करती रहती और रोमांटिक सीन आता तो उठ लेती ।

हाँ , माते !! समझ गई , जरा बाहर देखो , तुम्हारी पृथ्वी कितनी गोल घूम रही है । तभी धीरे से उत्तमा ने अपने बेडौल होते शरीर पर एक निगाह डाली और ठंडी सी आह भरती हुई बाहर देखने लगी । सुनयना !! जब हम युवा होते हैं , तब सब कुछ सुहाता है , अच्छे - बुरे का भेद नही दिखता लेकिन एक उम्र के बाद ... सब समझ आता है । हमें क्या करना है या नहीं करना है ।

हाँ , तुम ठीक कहती हो । उत्तमा !! एक बार मैं , ऊँची पहाड़ी पर बने देवस्थान पर गई ----

क्रमश :..........

रेनू .......

4 comments:

निर्मला कपिला said...

बहुत बडिया आगे का इन्तज़ार रहेगा आभार्

निर्मला कपिला said...
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निर्मला कपिला said...
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Udan Tashtari said...

अच्छा प्रवाह है..जारी रहें..