आज कल गैंग रेप बहुत चर्चा में है , एक हफ्ते में ही कहीं न कहीं से ख़बर मिल जाती है इस खुरापात की । हमारी सरकारें सैक्स शिक्षा पर लगातार जोर दे रही हैं , क्या पढाया जाय , क्या नहीं इस पर किसी की तवज्जो नही है । वैसे ऐसा नही लगता , बिना शैक्षिक ज्ञान के भी उतावले लोग किस कदर वहशीपन दिखा रहे हैं । हो सकता है कि कहीं से अनैतिक ज्ञान लेकर ही , प्रयोग करने सड़कों पर निकल पड़ते हैं ।
कितनी शर्मनाक स्तिथि है , राज्य सरकारें इन दुराचारियों को पकड़ना तो दूर , कोई ठोस कार्यवाही करती भी नही दिखती । सुरक्षा व्यवस्था निष्प्राण सी लगती है । चौराहें के बाजू में बनी पुलिस चौकी पर , सिपाही महोदय कभी तो , तम्बाकू फांकते नज़र आते हैं , कभी पास ही पान की गुमटी पर होंट लाल कर रहे होते हैं । उन्हें उर्निफोम पहनने का सलीका तक नही है , कोई सम्मान नही अपने ओहदे का , आत्म विश्वास नही तो कैसे सुरक्षा होगी ।
रात के प्रथम प्रहार में ही यदि आप किसी संदिग्ध व्यक्ति को देखकर , पुलिस को सूचित भी करें तो , कोई सुनवाई नही होती । उन्हें लगता होगा अरे !! भाई यह तो हमारा ही इलाका है , आप हमें क्या बता रहे हो , फ़िर कैसे न हों बलात्कार !!!!!
प्रकृति के गुणों के साथ ही लिपटा हुआ है किसी भी प्रकार का अपराध , जड़ मूल से नष्ट नही किया जा सकता लेकिन , काफ़ी हद तक रोका जा सकता है । पशु -पक्षियों , जानवरों से लेकर मानवों तक यह रोग व्याप्त है ।
हमारे घरों की चारदीवारी से निकलकर अब , सड़कों पर खुलेआम यह व्यभिचार किया जा रहा है , घरों रुपी मांद में रहने वाले भेड़िये जो बच्चों , युवा और असहायों पर बलात अत्याचार किया करते थे , वे ही अब शहर की ओर दौड़ रहे हैं । कहने को ये भी अपने ही लोग कहे जाते हैं , उनकी प्रवृतियाँ , विचार , भाव , संस्कार कुछ भी ठीक नही होता या कहें कि उनकी परवरिश ठीक नही हो पति । कुछ तो मनोवैज्ञानिक कारण होते ही हैं ।
अपने ही रिश्तों में हम उनको पहचान नही पाते हैं , समाज , परिवार , रिश्तों की मरियादा ओर लाज के कारण उन यातनाओं को दबा दिया जाता है । अपराधी के हौसले बुलंद होने में समय नही लगता क्योंकि वह परिवार की कमजोरी को समझ जाता है । अब , किसी मादक पदार्थ की झनक में अपराधी यह सोच ही नही पाता कि वह सड़क पर है या गाड़ी में या ट्रेन में । इन अपराधियों से कोई स्थान नही बचा है ।
प्राचीन ग्रन्थों के अध्ययन से पता चला है कि पाषाण स्त्री प्रतिमाओं से कामी पुरूष रति सुख लेने का प्रयास किया करते थे । पशुओं से भी काम कृत्य करते थे , शायद आज भी हो , क्या कहा जा सकता है ? हमारी पृथ्वी पर हर प्रकार के मानव हैं । मानव का यही विकास क्रम है , इन्हें हम निकृष्ट , नीच , अधम , पापी ओर न जाने कितने नामों से बुलाते हैं । मानव मस्तिष्क की चेतना का स्तर व्यक्ति के कार्यों , विचारों , भावों ओर संवेदना से मापा जाता है । हमारे मस्तिष्क की उच्चता ही हमारा आध्यात्म होता है । खैर ....
हम बलात्कार की बात कर रहे थे , इस कृत्य के शिकार बनने के हजारों कारण हैं - इनमें से प्रमुख हैं - बेवकूफी , सतर्कता का अभाव , अतिविश्वास , खतरा मोल लेने की आदत , हमारी बुरी आदतें , पहनावा आदि .... घर से बाहर निकलकर अति विश्वास दिखाना भी घातक हो सकता है , शरीर का प्रदर्शन न करें , अपनों के साथ भी सतर्क रहें , एकांत स्थान पर अकेले न जाय , किसी अजनवी से लिफ्ट न लें , यह तो कुछ सावधानियां हैं ।
गैंगरेप जैसे अपराध में किसी एक पक्ष का पाप नही माना जा सकता , दोनो लोग पूरी तरह से दोषी हैं । स्त्री ओर पुरुषों को बराबर दंड मिलना चाहिए । ऐसी स्तिथि कैसे आ गई ? कुछ भी नही कहा जा सकता , कहाँ व्यापार हो रहा था या अपराध ? पकड़े जाने पर सब कुछ बदल गया । जब , कोई युवती किसी धनी पुरूष के घर में काम करती है तो , पहले से सतर्क क्यों नही थी । छोटी सी बात होने पर ही काम क्यों नही छोड़ दिया , कुछ रहस्य सा घेर लेता है । क्या धन का लालच था ? या मालिक को बदनाम करना था ? आज के संचार युग में कुछ भी सम्भव है ।
धार्मिक संस्थान से जुडा हुआ महात्मा भी अपनी काम भावना पर नियंत्रण नही कर पाता और अपना पतन कर लेता है । हमारी सुरक्षा को लेकर हमें स्वयं ही चिंतित होना पड़ेगा । सड़कों , चौराहों पर अपमानित होने से बेहतर होगा , हम अपनी आत्मा और शरीर की शुद्धता , पवित्रता का स्वयं ही ख्याल रखें । किसी पर शरीर को स्पर्श न कर , दूर से बात कर लें , संस्कारों की शाश्वत वसीहत को निरंतरता दें । स्वयं को इतना मजबूत बना लें कि कोई कुदृष्टि न डाल सके ।
भरोसा है समाज के ठेकेदारों पर जो , कानून को सर्वोपरि मानते हैं और कहते हैं कि ईश्वर के घर देर है , पर अंधेर नही है ।
रेनू शर्मा ...
5 comments:
संतुलित विश्लेषण के आधार पर बलात्कार जैसी समस्या पर एक सटीक आलेख लिखा आपने...
श्वर से कुछ उम्मीद मत करिए ,वो वैसे ही ओवर लोड से परेशान है ... इसका तरीका सिर्फ एक है कानून में कड़ी सी कडा सजा का प्रावधान ओर इतना तगड़ा आर्थिक दंड की अपराधी की चूले हिल जाए .
आपने बहुत कुछ लिख डाला. सावधानियां ही हैं जिनकी अवहेलना बारम्बार हो रही है. बहुत ही बढ़िया पोस्ट. आभार
अच्छी पोस्ट. डॉ अनुराग की बात ही दोहराना चाहूँगा.
Bahut sahi likha apne.
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आयें मेरे "शब्द सृजन की ओर" भी और कुछ कहें भी....
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