Monday, May 11, 2009

चौपट शिक्षा पद्धति


शिक्षा पद्धति से नाराजगी को लेकर हजारों बार लोगों ने कलम चलाई है और हर बार मुंह की खाई है । जब हम विज्ञानं का विकास कर रहे हैं , नित नए हैण्ड सैट बाजार में ला रहे हैं जो सबसे अधिक विद्यार्थी ही स्तेमाल करते हैं , फ़िर क्या वजह है कि हमारी सरकार ज्ञानी शिक्षकों की भरती नही कर पा रही है ? हम सब जानते हैं कि गाँव के युवा ही स्कूल में पढाने का काम करने लगते हैं । उनका अधिकतर समय खेत -खलियान और अपनी परचूनी की दुकान की देखभाल में ही निकलता है । शिक्षा जैसे मिशन के लिए उनके पास समय ही नहीं है ।

इस तरह की नियमावली के लिए विद्धार्थी , शिक्षक , प्रधानाचार्य , पञ्च परमेश्वर और हमारी सरकार बराबर से जिम्मेवार है । परीक्षा परिणाम आने पर ही पता चलता है कि शिक्षा का स्तर कितना गिर गया है । हम चाहे स्कूलों में मिड दे मील योजना लागू करें , मुफ्त जल योजना लागू करें कुछ भी हासिल नही हो पायेगा सिवाय वोट के । जब तक हम बेसिक सुविधाओं को नही जुटा लेंगे ,तब तक क्या पाने की उम्मीद रखें ।

राजधानी से लगे स्कूलों की दुर्दशा को हमने देखा है , जिन रास्तों से सरकारी अफसर रोज गुजरते हैं , दरकती स्कूल दीवारों पर छींटा-कशी करते हैं , पर समस्या का हल किसी के पास नही है । बच्चे रटंत -विद्ध्या के सहारे आगे चलते रहते हैं । स्कूलों में कहीं छत , पानी , बिजली की समस्या है ,तो कहीं विद्ध्यार्थी ही नही हैं । फ़िर भी सालों तक स्कूल चलते रहते हैं । हमारी सरकार कोई रूप रेखा क्यों नही बनाती ?

सरकारी योजनायें जोर -शोर से लागु रहती हैं , कभी साईकिल , किताबें ,कभी धन दिया जाता है तब भी हजारों की संख्या में माल गोदामों में पड़ा रहता है ।शिक्षा के नाम पर लोग रोजगार चला रहे हैं । विकास और उन्नति का कोई हिसाब ही नही रहता । बच्चों में नैतिक ज्ञान की सरासर कमी है । शिक्षा के प्रति लगाव की कमी है । हर युवक को एक सर्टिफिकेट चाहिए ताकि शहरों की तरफ़ जा कर अपराधी प्रवृति को बढाया जाए । यह सब कैसे रोका जा सकता है ।

सरकार को चाहिए कि वर्ष भर सिर्फ़ शिक्षा का कार्य ही शिक्षक से लिया जाए । अन्य कार्यों के लिए उन्हें मजबूर न किया जाय। हर शिक्षक को स्कूल की विशेष जिम्मेवारी सौंपी जाए और उसकी रिपोर्ट ली जाए , किसी प्रकार की कोताही बरतने पर उचित दंड भी दिया जाए । शिक्षा को चौपट करने में सबसे बड़ा हाथ प्रिंसिपल्स का भी होता है , यदि इनकी कर्मठता में निरंतरता रहे तो सब सुधर सकता है । सब लोग अपने गोरख -धंधों में लगे रहते हैं । क्या सरकार उनकी निगरानी करती है ?

जब तक हम नींव मजबूत नही करेंगे , तब तक बच्चों को पढ़ाई के लिए दोष कैसे दिया जा सकता है । तथाकथित भ्रष्ट नुमाइंदे ही शिक्षा पद्धति के पतन के लिए जिम्मेवार हैं । अभी देर नही हुई है , सुधार कर सकते हैं । हम विज्ञानं मंथन पर हजारों रुपये पानी की तरह बहा रहे हैं , क्यों न स्कूलों का विकास किया जाए । ताकि अभिभावकों और बच्चों को शिक्षा के लिए शहरों की ओर पलायन न करना पड़े । बच्चों को रेल यात्रा करा कर हमने क्या पा लिया ? शिक्षा का स्तर सुधारना पड़ेगा , तब कुछ हासिल होगा । हमारी सोच जमीनी होनी चाहिए । लाडली जब स्कूल जायेगी तो , स्कूल ऐसा हो जहाँ से उसका लौटने का मन न हो ।

अब समय है शिक्षा पद्धति को मूल से बदल डालने का । कोताही अक्षम्य हो , तभी बात बन पायेगी । कुछ तो करना ही होगा । चौपट शिक्षा को वापस ज्ञान का दिया दिखाना ही होगा ।

रेनू शर्मा ....

1 comment:

विजय तिवारी " किसलय " said...

रेनू जी एक गंभीर समस्या और ज्वलंत प्रश्न को आपने अपनी पोस्ट के माध्यम से उठाया है.
- विजय