Thursday, May 7, 2009

सिंहासन छत्तीसी


सिंहासन पर आरुड होने से पूर्व की हजारों रोचक घटनाएँ हम कहानियों में सुनते आ रहे हैं । कैसे कोई वीर योद्धा , शासक या बहादुर अपने प्रयासों की शक्ति को एकत्र कर कुर्सी पाने के लिए संघर्ष करता है । और जब , सिंहासन पर आरुड हो जाता है तब , उसके सामने क्या -क्या परेशानियाँ आतीं हैं उन सबका बखान हम सुन और पढ़ चुके हैं ।

कहते हैं इतिहास स्वयं को दोहराता रहता है , यह बात हम अपने घरों में आसानी से देख समझ सकते हैं । हर नई पीड़ी के साथ वही सब होता है जो , उनके पूर्वजों के साथ हो चुका होता है । जैसे सास यदि बहु को परेशां करती है तो , कोई बन्दा उस सास के जीवन में ऐसा आता है जो उसकी बत्ती गुल करके रखता है ।बहु यदि अगली पीड़ी पर गुबार निकालने का प्रयास करती है तो , उसकी संतान ही उसे सबक सिखा देती है । ईश्वरीय दंड प्रकिरिया बड़ी सटीक है । टिट फॉर टैट वाली बात लागु होती है ।

यही बात हमारे देश के साथ भी लागु होती है । कोई नेता जब बड़ा नेता बनता है , फ़िर तिकड़म चलाकर मंत्री बन जाता है । जाने कैसा चुम्बकत्व होता है उस सिंहासन में कि हर पढ़ा -लिखा , गंवार , धनी-निर्धन सब उसकी तरफ़ खिचे चले जाते हैं ,पूरा जीवन सिंहासन के इर्द -गिर्द ही बिता देते हैं ।

हर पाँच साल में घमासान होने लगती है । कुर्सी की दौड़ में जाने कितने योद्धा , वीर , कायर , दुष्ट , शिक्षित , अशिक्षित ,रानी -महारानी , चौधरानी सब पदयात्रा करते हैं । जनता से धन वसूली कर , जनता को स्वप्न हिंडोले में बिठा कर जन्नत की सैर का भरोसा दिलाते हैं , पूरे ठाट -बाट से रास रचाते हुए गायब हो जाते हैं ।

आज कोई सिंहासन ऐसा नही जो कहानियों के माध्यम से सवाल जवाब करे , सिंहासन पर बैठने की योग्यता को परखे , यहाँ तो छत्तीस नियम भी इन बन्दों की जूती तले पिस जाते हैं । कोई कानून इन्हें नहीं रोकता । राजनीति की कूटनीति का बाजार गर्म रहता है ।

हम संस्कारों की बात भी करते हैं लेकिन अंतर्राष्ट्रीय संचार साधनों के सामने भी देश के तथाकथित संरक्षक , अपशब्दों का प्रयोग कर अपने विरोधियों पर घात करते हैं । मार -काट मचाते हैं । बच्चों को क्या शिक्षा देना चाहते हैं ये ? आने वाली पीड़ी इनकी नीचता को देखकर क्या सोचती होगी ? राजनीति को बड़ा पैचिंदा और घिनौना व्यापार समझने लगे हैं । समाज सेवा तो एक धब्बा सा दिखाई देता है , इसका अपवाद भी हो सकता है ।

सिंहासन की छीना -झपटी में हजारों पुत्तिलिकाएं एक नई कथा सुनाएंगी , पर हर बार की तरह परीक्षा में असफल मानव ही उस कुर्सी पर आरुड हो जाएगा । शासन करने का कुपात्र बनेगा ।

शुभकामनायें .......

रेनू .....

2 comments:

इष्ट देव सांकृत्यायन said...

कुपात्रों के लिए अब मौक़ा बहुत दिनों तक नहीं है रेनू जी. पर अभी दस-बीस साल झेलना पड़ेगा. तब तक हमें तैयारी करनी चाहिए, इन्हें बाय-बाय करने

Udan Tashtari said...

सटीक सिंहासन छत्तीसी.