Saturday, March 7, 2009

आतंकी चालबाजी


कलयुग में अधर्म का पाया बढ़ जाता है , यह इसी बात से साबित होता है कि बेमतलब ही कश्मीर को घायल किया जा रहा है , कभी बम्बई में खुलेआम रक्तपात होता है , कभी ट्रेन खून से सन जाती हैं , कभी बाजारों की सड़कें अस्त -व्यस्त हो जतिन हैं । लोग समझ नही पाते आख़िर यह सब क्या हो रहा है ? सब लोग पुलिस , खुफिया तंत्र , नेवी और सरकार पर आरोपों की झडी लगा देतें हैं । कहीं दूर सब ठीक भी है क्योंकि हम सबकी लापरवाही के कारण ही यह सब सम्भव हो पाया । हम आतंक की दहशत को बार -बार झेलने के लिए मजबूर हो जाते हैं ।

एक उदाहरण है जब , किसी घर में चोरी होती है तब दो तीन ही मुख्य वजह होतीं हैं , मालिक का बाहर जाना , चौकीदार की मिलीभगत , पडौसी की खुराफात , या फ़िर मालिक की लापरवाही । कई बार घर का भेदी भी वारदात करा देता है । भारत के आतंकी हमले भी इसी तरह की कमियों के कारण हुए हैं ।

हमलों के बाद शक की सुई पडौसी पर जा टिकी , सब लोग भांति -भांति से कोसने लगे , तब एक शातिर , धूर्त , मक्कार पडौसी की तरह उन्होंने अपने ही देश में विदेशी खिलाड़ियों को ही आतंक का शिकार बना दिया । पूरी दुनिया के सामने यह साबित करने के लिए कि देखो हम तो ख़ुद ही आतंक के मारे हैं । लोग हमें यूँ ही आतंकी सरगना कहते हैं । इस तरह का कारनामा एक शातिर दिमाग ही कर सकता है । यह वही बात हुई कि जब दो चार लोग आपस में उलझ जाते हैं , तब एक पार्टी ठाणे में रिपोर्ट लिखा देती है , पता चलने पर दूसरी पार्टी भी शरीर पर घाव लगाकर ठाणे चली जाती है , साहब !! देखिये हमें मारा -पीटा है । अंततः सम्झैस के बाद केस रफा -दफा हो जाता है ।

यहाँ भी यही साबित करने का प्रयास किया जा रहा है । आतंक के बहाने किसी श्रेष्ठ टीम को रस्ते से हटाना ही उनका लक्ष्य था । अब , प्रश्न उठता है कि क्या यह लोग फ़िर साथ -साथ खेलेंगे ? हाँ , अवश्य , क्योंकि व्यवसाय और धन ही इस युग की परम आवश्यकता है । धन के लिए तो आतंकी भी बना जा सकता है ।

लेकिन इन बचकानी हरकतों को किस ठाणे का दरोगा बाबू नही समझता ? पूरी दुनिया जानती है । दाग धोने के लिए नए घावों की नही बल्कि मलहम की जरूरत होती है ।

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