काफी अरसे से सुनते चले आ रहे हैं कि नारी की स्तिथि अब सुधर गई है । अब पहले जैसी बात नही है । हाँ , औरत अब , चतुर हो गई है ,उसे समझ आने लगा है कि जब तक अपने पैरों पर खड़ी नही होगी उसे कहीं भी सम्मान नही मिल सकता । घर में बच्चों की परिवरिश भी करनी है , घर का खर्च भी चलाना है , रिश्ते भी निभाने हैं , किसी भी दुर्घटना के लिए संचय भी करके रखना है । जाने क्या -क्या जंजाल स्त्री के जी से ही लगे रहते हैं ।
पुरूष भी यही सब कर रहा है । हम कह सकते हैं कि अब नारी शक्ति पहले की अपेक्षा अधिक बढ़ गई है । क्योंकि उन औरतों की बात करना अधिक जरूरी है जो , सुबह से उठ कर कोल्हू के बैल की तरह लग जातीं हैं । मजदूरी करतीं हैं , बच्चे को पालती हैं , शाम को कुछ रुपये लेकर घर लौटती हैं और पति के साथ चूल्हा जलाने का सामान लाकर , रोटी बनाती है ।
मूल रूप से औरत की शक्ति तो यही है । हजारों सुविधाओं के बीच अगर किसी ने व्यवसाय चला लिया तो सुर्खियाँ बन जाता है । लिखना सीख कर कुछ कविता , कहानी रच लेने से वे , साहित्यकार बन जाती हैं । बड़े होटल की लौवी में जाम छलका कर वे , आधुनिक बन जातीं हैं । पर हम कैसे भूल जाते हैं कि आधुनिक औरत की शक्ति वही मजदूर औरत होती है , जो दिन रात मेहनत करते हुए , कमसेकम मुझे तो प्रेरित करती है कि अब , जागने का समय आ गया है । हमें , इन महिलाओं से ज्ञान लेना चाहिए । ये ही हमारे भीतर उर्जा भरती हैं
। इनके उत्साह को , हौसले को मैं सलाम करती हूँ ।
रेनू ......
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