Friday, February 20, 2009

मृत्यु ही सत्य है


मानवीय संस्कारों मैं विवाहोपरांत गर्भादान संस्कार का विधान है , जिसके लिए हमारे शाश्त्रों मैं पर्याप्त विधि -विधान मौजूद हैं । जैसे ही नवविवाहिता गर्भधारण करती है , सभी परिजन और रिश्तेदार प्रसन्न हो उठते हैं । तरह -तरह के उपहार लाकर गर्भिणी का मन खुश किया जाता है । दोहद इच्छा का विशेष ध्यान रखा जाता है । उसकी स्वाद ग्रंथियों से गर्भस्थ शिशु के लिंग का अनुमान लगा लिया जाता है । कहने का आशय है कि हम जन्म को लेकर इतने उतावले और खुश होते हैं पर मृत्यु या काल को लेकर उदास हो जाते हैं ।


हम सब जानते हैं कि जन्म और मृत्यु अटल सत्य हैं , यहाँ तक कि पृथ्वी पर कब , क्या घटने वाला है सब पूर्व निर्धारित और शाश्वत है । कहा जाता है कि मानव , पशु , जीव , जंतु और प्रकृति तो सृष्टि के रंग मंच की कठपुतली हैं , सूत्रधार एक अदृश्य शक्ति है , जो हम सबका सञ्चालन करता है । हम सभी अपने चेतन स्तर के माध्यम से उस अदृश्य शक्ति का एक रूप बना लेते हैं । उसकी आराधना करते हैं , गान करते हैं और प्राथना करते हैं ।


जब हम सब मृत्यु के सच को जानते हैं तब कैसा घबराना ? मृत्यु को जानने , पहचानने में कैसा संकोच । दुनिया भर के लोग जेड़ गुडी की मृत्यु के सीधे प्रसारण को लेकर चर्चा कर रहे हैं । आख़िर क्यों हम काल का सामना करने से मुकरते हैं , जेड़ गुडी का शरीर कैंसर के कीटाडुयों से संक्रमित हो गया है , डॉक्टर के अनुसार वह जीवन का आखिरी वक्त गुजार रही है । वह चाहती है कि दुनिया भर के लोग उसे मरता हुए देखें , सभी लोग मौत और उसके कारणों को समझें । किसी भी बीमारी से ग्रस्त व्यक्ति साहस और शक्ति के साथ अपने रोग से मुकाबला करे । नेक ख्याल है ।


यह भी सब जानते हैं कि जेड़ गुडी के पास न धन की कमी है न डॉक्टर की , जब समय यूँ ही पूरा होना है तब हजार बहाने बन जाते हैं । हमें भी उस अन्तिम पल के लिए तैयार रहना चाहिए , जब हजारों घंटियाँ हमारे कानों के परदे में अनहद नाद की ध्वनि सुनाती हैं , एक दिव्य तेज हमारे तृतीय नेत्र पर स्थापित हो , हमें स्वयम से ही परिचित करवाता है । नीली सुरंग जिसे हम लोग ब्लैक होल कहते हैं , उसे हम अपने नेत्रों के द्वारा ही अनुभव कर सकते हैं , वह भी पूरे होश में । हजारों सूर्यों का प्रकाश जिसके द्वार पर एक वृद्ध दिखाई देता है वह असल में हमारा कारन शरीर ही होता है । और न जाने क्या -क्या .....


यह सब कुछ पलों का ही तमाशा होता है । हर प्राणी को इसका अनुभव हो सकता है , फ़िर वही चेतना के स्तर की बात ही मुख्य होती है । इसीलिए कहा जाता है कि सत्कर्म करो , मानवीय धर्म का पालन करो उस परम शक्ति पर विश्वास रखो तब ही मुक्ति सम्भव है ।


मृत्यु का जीवंत प्रदर्शन कोई अपराध नही है बशर्ते , उद्धेश्य शिक्षा या प्रेरणादायक हो । हम मौत को करीब से देखकर भी साम दाम दंड भेद में लग जाते हैं । श्री मद भगवद गीता में कहा गया है कि आत्मा कभी नही मरती है ,क्योंकि वह एक उर्जा होती है । अखंड उर्जा अर्थात चैतन्य उर्जा आत्मा में जाकर मिल जाती है । तब आत्मा का परमात्मा में मिलन हो गया कहा जाता है ।


हमारे जीवन का लक्ष्य अपनी उर्जा को बढ़ाना ही है , udhd

3 comments:

इष्ट देव सांकृत्यायन said...

बात तो सही है. पर घबराते सभी हैं.

आशीष कुमार 'अंशु' said...

यह तो 'दर्शन' की बात हो गई.

Udan Tashtari said...

सही कह रहे हैं.