सदियों से सम्पूर्ण पृथ्वी पर पुरूष का एकाधिकार रहा है , चाहे वह क्षेत्र लडाई का हो , विज्ञानं का हो , खेल कूद का हो , या राजपाट का क्षेत्र हो । अब , इक्कीसवीं सदी में स्त्रियों का वर्चस्व भी हर क्षेत्र में छाने लगा है , डॉक्टर , इन्जीनियर , वैज्ञानिक , खिलाड़ी , पायलट , ड्राइवर , स्वीमर हो या गृहणी या फ़िर देश की राष्ट्रपति हो या प्रधानमंत्री हर तरफ़ महिलाएं अपने बुद्धि कौशल का परिचय दे रहीं हैं । हालाँकि पुरूष के सहयोग के बिना स्त्री एक कदम भी आगे नही जा सकती यह भी सत्य है ।
बहुत पहले भारतीय परिवार में बेटियों को सिर्फ़ अक्षर ज्ञान कराया जाता था , आज शिक्षा के मायने ही बदल गए हैं । आज की नारी हर प्रकार के उद्धोग , कारखाने , ऑफिस , होटल , राजनीति वकील हर विषय में पारंगत हो नौकरी कर रही है । वे समझने लगी हैं कि शिक्षा का उनके जीवन में क्या महत्त्व है । जो माता -पिता बेटी की शिक्षा केवल विवाह के लिए ही करना चाहते हैं उन्हें भी समझ आने लगा है कि शिक्षा बेटी और बेटे दोनो के लिए आवश्यक है ।
पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव हमारे समाज पर तेजी से पड़ रहा है । फिरभी बेटियाँ अच्छी शिक्षा पाकर लड़कों से आगे आ रही हैं । उन्हें हर क्षेत्र में ललकार रहीं हैं । आजीविका की शिक्षा तो हर किसी के लिए परमावश्यक हो गई है । माता -पिता भी यही सोचने लगे हैं कि बच्चे पढ़ लिखकर आत्मनिर्भर हो जाय तो योग्य वर या वधु मिलने में भी देर नही होगी ।
आज के युवा वर्ग की चाहत कोई साडी में लिपटी गुडिया नही है , उन्हें जीवन साथी के रूप में संस्कारवान और शिक्षित साथी चाहिए । इसलिए माता -पिता को चाहिए की बेटी की शिक्षा केवल विवाह के लिए हो ऐसा न सोचें , इसी बात को दूसरी तरह कहा जा सकता है कि भारतीय आत्मा में डूबी , पाश्चात्य संस्कृति में लिपटी , मोहनी ही हर युवा की पसंद है , पुरूष वर्ग से दूरी बनाकर , शर्म की चादर में लिपटी कन्या को आधुनिक समाज अशिक्षित ही मानता है ।
आधुनिक बदलाव का लबादा पहनना भी सभी के लिए जरूरी हो गया है , क्योंकि हमारा समाज , संस्कृति और सभ्यता तो परिवर्तनशील है , इतिहास भी गवाह है । भोगोलिक उथल -पुथल के साथ सब कुछ बदल जाता है । हमें विशेष रूप से हमारे बुजुर्गों को बदलाव स्वीकार कर लेना चाहिए ।
अपने भविष्य के लिए बेटियाँ भी निर्णय ले रही हैं । स्वयं ही विषय का चुनाव करती हैं उन्हें क्या पढ़ना है क्या नही , जनसँख्या पर अंकुश लगाने वाले माता -पिता जो सिर्फ़ बेटियों के माता -पिता हैं उन्होंने रूडियों को तोडा है । वे जानते हैं कि बेटी भी वंश चला सकती है ।उन्होंने बेटे और बेटी के फर्क को मिटा दिया है । उनका उद्धेश्य अच्छी शिक्षा देना और संस्कार देना है । माता -पिता के नाम का परचम बेटियाँ ही लहरा रहीं हैं ।
हमें बेटे बेटी के फर्क को मिटा कर संतान को पालना चाहिए । उन्हें उचित शिक्षा और ज्ञान देना चाहिए । रेनू ......
3 comments:
सहमत हूँ.बढ़िया लेख. धन्यवाद.
सहमत हूँ.बढ़िया लेख. धन्यवाद.
सामाजिक बदलाव सिर्फ शिक्षा से ही संभव है। हमें कोशिश करनी चाहिए कि हर बेटी पढ़े और बढ़े।
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