Sunday, February 8, 2009

तौह्फे की महक


एक दिन अख़बार पर नज़र पड़ी तो पढ़ लिया , किसने अपनी जोरू को क्या तौहफा दिया , दिलचस्पी बढ गई थी , लगा जरा पता लगा लूँ कोई पति इतना बाबला भी हो सकता है कि कई सौ करोड़ का तोहफा अपनी बेगम को उपहार भी दे सकते हैं । आश्चर्य मिश्रित ईर्ष्या हो रही थी , देखो दुनिया में भले लोगों की कोई कमी नही है । ये लोग अपनी मह्रारू को कितना मान देते हैं , करोडों की संपत्ति उसके नाम कर देते हैं , इन्हें जरा भी संकोच नही होता कि एक स्त्री को मान देने की भी कोई लिमिट होती है ।

अख़बार वाले भी कैसे हैं ? ऐसी बातें बड़ा चडा कर छाप देंगे जो हमारी क्रोधाग्नि को और हवा दे । पता चला अम्बानी बंधुओं ने एक से बढ़कर एक तोहफे दे डाले , मुकेश ने ४००० करोड़ का २७ मंजिला ईमारत और २४२ करोड़ का जैट विमान दे दिया । अब छोटा भाई भी कहाँ पीछे रहने वाला था , उसने भी ४०० करोड़ का तियान याट अपनी पत्नी तीन को गिफ्ट कर दिया । दुनिया भर के धन कुबेरों की लिस्ट में अपना नाम बनाने वाले माल्या ने मात्र १८ साल के बेटे को एक कंपनी ही गिफ्ट कर दी । कोई २०० करोड़ का होटल बेटे को तोहफा दे कर घर की लक्ष्मी घर में ही रख रहा है ।

सुबह -सुबह यह सब पढ़कर तो लाजिमी था पति देव से झगडा करना । चाय का कप किनारे रखते पति पर बरस पड़ी क्योंजी !! आपने अख़बार पढ़ा , हाँ पढ़ा , क्या खाक पढ़ा । बाईस बरस की शादी शुदा जिन्दगी में आपने मुझे कितने तोहफे दिए ? अरे !! कैदी बात करती हो , सुबह से , सब तुम्हारा ही तो है । यह सरकारी बंगला , गाड़ी , नौकर चाकर , रसोई और क्या चाहिए ?? अरे !!! कैसी बेतुकी बात करते हो , मैं तो तोहफे की बात करती हूँ आप , मुझे पागल बना रहे हैं , जब पतिदेव ने देखा , बेगम कुछ गंभीर हैं तो बोले -देखो सुनयना !! दो प्यारे बच्चे हैं , किसने दिए ? घर है , हम हैं , सुख शान्ति है और क्या चाहिए ? पहनने ओढ़ने को और चाहिए तो बोल ? मुझे पता था ,आप यही कहोगे और तोहफे से अपना पल्ला झाड़ लोगे ।

सुनयना , सुनयना चिल्लाते हो , एक काजल की डिब्बी भी लाकर दी नही , देखो तुम सुबह से गड़बड़ करने पर उतारू हो , मैं तो चला पार्क में ताजगी लेने तुम चाहो तो इन अमीरों को गली दो या इनके तोहफे छीन लो , मेरा पीछा छोडो । यार , बेजा करती हो । तुम क्या जानो इन अमीरों की चोच्लेवाजी , घर मैं पड़ी रहती हो , बाहर निकलो तो पता चले दुनिया कहाँ है ? बस तोहफा चाहिए , कह दिया ।

पतिदेव अपनी खींज निकल कर चले गए । मैं , जानती थी तोहफे की जगह इस तरह की झिड़की ही मिलेगी । सब समझती हूँ हजारों करोड़ों की कलि कमी को सफ़ेद करने के लिए तथाकथित धनवान अपनी पत्नियों के नाम से उस धन को झक्क कर देते हैं , दुनिया भर मैं डंका पिट जाता है कि फलां आदमी कितना दिलदार है , जबकि अय्यासी और व्यभिचार की कोई लिस्ट कभी नही आती ।

अपनी सुबह ख़ुद ही रसहीन करके मैं उदास हो गई थी । बेवजह पतिदेव से तनाव कर बैठी । तोहफा मांग बैठी । घर का काम निवटाने में सब भूलती जा ताहि थी । दो घंटे बढ दरवाजे की घंटी बजी , पति देव रजनीगंधा के फूलों का गुच्छा लेकर हंसते हुए खड़े थे । तुम्हारा तोहफा !!कुछ लजाते , सकुचाते पति की बांहों मे समाती चली गई , रजनीगंधा की महक मुझे जीवंत कर रही थी , नई उर्जा दे रही थी ।

रेनू .....

5 comments:

vandana gupta said...

bahut khoob renu ji..........padhkar achcha laga kyunki yahi sach hai.
us tohfe aur pati ke diye pyar bhare tohfe ki koi keemat nhi hoti.wo dikhawa hota hai aur yeh haqeeqat.

विजय तिवारी " किसलय " said...
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Vinay said...

स्त्री के मनोभाव दर्शाती अच्छी कहानी है

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गुलाबी कोंपलें

संगीता पुरी said...

नाराजगी जितनी तेजी से चढती है....उतनी ही तेजी से उतरती भी है......;प्‍यार से दिया गया तोहफा तो तोहफा ही होता है.....फिर वह सामान्‍य पुष्‍पगुच्‍छ ही क्‍यो न हो।

विजय तिवारी " किसलय " said...

रेनू शर्मा जी
अभिवंदन.
सबसे पहले प्रत्युत्तर में देरी के लिए खेद.
तोहफे की महक ने मुझे भी सोचने पर मजबूर कर दिया की कलि कमाई को सफ़ेद में बदलने के लिए सच में बड़े लोग अपनी बीबियों का सहारा लेने से भी नहीं चूकते.
शायद यह भी सच है कि करोड़ों का स्वार्थपरक गिफ्ट से हज़ार गुना अच्छा प्रेम से सिक्त सुगन्धित गुलदस्ता ही होता है .
आपका ये आलेख प्रेरणास्पद होने के साथ साथ समझने वालों के लिए यथार्थपरक भी है.
-विजय