Friday, January 30, 2009

स्लम हीरो की जय हो



सर्व विदित है कि जो जितना अमीर होता है वह गरीबों का और अधिक खून चूसना शुरू कर देता है क्योंकि उसकी प्रतिस्पर्धा तथाकथित अमीरों से शुरू हो जाती है । अमीरों के चौंचले का एक नाम ऑस्कर भी है । विदेशों में भारत कि गरीबी को भुनाने वाले भी भारतीय ही होते हैं जो यहाँ के लोगों को धोह्का देकर , ठग कर वहाँ अपनी दिखावटी जय करवाते हैं ।


सच , पूछा जाय तो स्लमडॉगमिनेनियर की कामयावी उन नन्हे बच्चों की वजह से ही है । पूरी फ़िल्म में सिर्फ़ बच्चों का अभिनय ही काबिलेतारीफ है । अब बड़े लोग उस कामयावी को भुनाकर रिंग रिंग रंगा करने लगे तो क्या किया जा सकता है ।


सुना गया है किबच्चों को उनका महनताना भी नही दिया गया । सबसा बड़ी बात होती है यदि आपने सफलता को पाया है तो उसमें सबका बराबर का भाग होता है । जो लोग विदेश में जाकर जय हो , जय हो चिल्ला रहे हैं , जरा उस स्लम में जाकर जय हो करें , जिन्हें दुनिया के सामने कुत्ता उपाधि से नवाजा गया है । असली स्लम डॉग तो वही हैं जो विदेश में पुँछ हिला रहे हैं ।


कोई भी अपने देश का भला नही करना चाहता उन्हें बस रोकडा चाहिए । भारतीय तिरंगे को लेकर दौड़ लगा देंगे , पर उत्थान के लिए कुछ नही करेंगे । वे क्या सोचते हैं कि ऑस्कर पाकर वे महान हो जायेगे , वे धोबी के कुत्ते न घर के न घाट के होकर रहेंगे ।


एसा पहली बार नही हुआ है , जब बच्चों का शोषण किया गया हो , भारतीय समाज के बीहड़ में पलने वाली लतिकाओं से पूछो उन पर क्या बीतती है । उन बच्चों पर जो रोजी रोटी के लिए बचपन दांव पर लगा देते हैं । कुछ लोग उनका तमाशा बनाकर जय हो बोलते हैं । बच्चों की शिक्षा , रहन सहन की जय करते , स्लम को सलाम ठोकते , तब समझमें आता । खैर ...कलम की नाराजगी से कुछ भी हासिल न होगा । ईश्वर से दुआ चाहेंगे कि कहीं कोई स्लम न हो , कोई किसी को कुत्ता कहकर अपमानित न कर सके ।


रेनू ....


1 comment:

संगीता पुरी said...

ईश्वर से दुआ चाहेंगे कि कहीं कोई स्लम न हो , कोई किसी को कुत्ता कहकर अपमानित न कर सके ....सही है।