Saturday, January 10, 2009

तथास्तु

पृथ्वी पर पहला कदम किस प्राणी ने रखा कहना मुश्किल है , किस शासक ने राजकाज संभाला बताना असंभव है लेकिन युगों उपरान्त भी हम एक इंच भूमि के लिए लड़मर रहें हैं । सत्ता का आकर्षण इतना सम्मोहित करने वाला है कि हम देवताओं को भी उसके लिए झगड़ते हुए कल्पना कर सकते हैं । हमारे धर्म ग्रन्थ , वेद , पुराण सब सामाजिक उथल -पुथल से भरे हुए हैं । मान -अपमान , पांडित्य ,बल , साहस , शौर्य ही उन राजाओं की पहचान हुआ करता था , विकास प्रक्रिया के साथ ही राज शासन की नीति का पतन हो गया और भारतीय परिवेश में लोकतंत्र ने अपनी जड़ें अंग्रेजी सत्ता धीसों को खदेड़ने के साथ ही जमानी शुरू कर दीं थीं । राजनीती कितनी घटिया , उलझी हुई कार्य -प्रणाली है कि यहाँ किसी भी पद की प्रति के लिए साम -दाम -दंड -भेद की नीति अपनाई जाती है ।
प्रजातांत्रिक देश की बागडोर सँभालने के लिए भी दिग्गज आपस में खींचा तानी करते रहते हैं । आज की राजनीति भी कुछ इसी तरह राजशाही या चक्रवर्ती सम्राटों के सिंहासन से कम नही है । चहरे और समय बदल गया है लेकिन स्तिथियाँ वहीं हैं । जो जितना भ्रष्ट होगा , कुटिल होगा या खुरापाती होगा , दंडी -फंदी होगा , पाजी होगा वह उतना ही श्रेष्ठ राजनीतिज्ञ कहलायेगा ।
आज विज्ञानं के साथ इन्सान जीता मरता है , शिक्षा का प्रसार असीमित हो गया है , तब किसी शासक द्वारा सीनाजोरी से काम नही चलाया जा सकता । राजा अपनी मर्जी नही चला सकता , जनता अपने नियम स्वयं ही बनाती है , शासक के सामने पेश कर देती है । शासक उचित को मान लेता है और अनुचित को विचार के लिए रखता है ।
सरकार सिर्फ़ नियमों के पालन से ही नहीं चलती , जब शुल्क संग्रह किया जाता है तब मानवीय विकास ही मुख्य मुद्दा होता है , हमारे व्यापार , विकास , खेती , उर्जा , जनसँख्या , सामाजिक व्यवस्था सब मिलकर ही हमारी उन्नति को दर्शाते हैं ।
नित नई विज्ञान की खोजों के साथ ज्ञान के विस्तार के साथ लाज़मी हो गया है कीसरकारी नुमाइंदा शिक्षित हो, और सभी विषयों में पारंगत हो। आने वाले समय में शासक के लिए युद्धकला, शस्त्रविद्या, शाश्त्रविद्य, अर्थविध्या , राजविद्या सभी में पारंगत होना आवश्यक हो जाएगा। फ़िर साम, दाम, दंड और भेद राजनीति से रफूचक्कर होते नज़र आएंगे। जिस तरह बैंक प्रणाली कार्य करती है, हमारी शिक्षा , सेना विभाग ,स्वास्थ्य विभाग, पर्यटन विभाग है और होगा जहाँ प्रवेश पाने के लिए विशेष योग्यता भी आवश्यक होगी। तभी हम कल्पना कर सकते हैं की हमारा राष्ट्र विकसित राष्ट्र से उन्नत होगा, फ़िर एक चमकता ज्ञान का केन्द्र होगा, जहाँ की माटी की सुगंध के लिए इंसान पहले राष्ट्र परिक्रमा करेगा, दंडवत करेगा तब प्रवेश कर पायेगा।
तथास्तु।

1 comment:

नीरज गोस्वामी said...

बहुत अच्छा लिखा लिखा है आपने...एक सार्थक लेख है आपका ये...
नीरज