Friday, December 26, 2008

माया महा ठगनी


पुराणी बात है , एक राजा की प्रजा बढ़ी सक्षम थी , नगरीय कार्य बढ़ी चतुरता से विकास की सीड़ी चड़ रहे थे । राजा को किसी प्रकांड पंडित ने बता दिया कि माया तो आनी - जानी है , चंचला है , मानव जीवन भी नश्वर है । रूप सौन्दर्य , वय , कर्म सब काल की गति से शापित हैं । कुछ भी ठहरता नही । पर एक काम है , यदि आप भव्य महल , किले , कूए , बाबडी का निर्माण कराएँ तो कभी न मर पाओगे । अमर हो जाओगे क्यों की पर्थिवी अमर है ।

राजा को बात जम गई , प्रजा पर कर लगा कर वसूली करना शुरू कर दिया । जनता विद्रोह करने लगी , राजा के प्रति विरक्ति हो गई , गरीब आदमी दो रोटी के लिए मोहताज होने लगा , माया तो खेल दिखा रही थी । रजा कई बरसों तक , अपनी मैं मगन रहा , विकास रुक गया , अंतत: माया के जाल मैं फसकर मारा गया । हालाँकि महल , चौबारे , किले खंडित अवस्था मैं तो आज भी जिन्दा हैं लेकिन प्रजा हित सार्थक नही हुआ ।

वही अमरता की कहानी आज भी दोहराई जा रही है । महा माया देवी , कुख्यात सुंदरी , महा विद्वान प्रजा की माया को , कर वसूली के महान अभियान के तहत , जन्मदिन के उपहार के रूप मैं , नेता मंत्री , सेवक , असेवक सबसे ग्रहण की जा रही है । संग्रह करता बलात धन उगाही मैं लगे हैं , हाहाकार मच गई है , मारकाट हो चली है ।

विकास के नाम पर महा माया ठगनी !! विशाल प्रस्तर खंड से अपना भयानक प्रति रूप खडा कर , जनता को भयभीत करना चाहती है ,

शास्त्रों ने सच ही कहा है , महा माया नारी यदि विकराल रूप धरले तो अच्छे - अच्छे विष्णू शय्या पर ही मृत हो लेंगे । जब सब कुछ नश्वर है , तब इस माया का जाल किस लिए बुना जा रहा है , प्रजा को मत मारो , कोप लगेगा । जब आतंकियों को सबक सिखाया जा सकता है तब , औरों की क्या विसात ।

रेनू शर्मा ......