घरेलू सुंदरियाँ जो पारिवारिक दायित्व भी शायद निभा लेती होंगी , सुरक्षित लिवास मैं मुखर वाग - प्रहारों के साथ पार्टी के अध्यक्ष महोदय पर बरस रहीं हैं । हमें टिकट क्यों नहीं दिया गया ? तमतमाया मुख , फुन्फ़ कारती आवाज , इधर से उधर भटक रहीं हैं । उन्हें लग रहा है , जैसे उन्हें दूध की मक्खी सा निकाल दिया है , हम भी तो सक्रीय कार्य करता हैं , हमारे मतदाता भी हैं , हमारा परिश्रम है फ़िर ओहदे की दौड़ के लिए एडमिशन फार्म क्यों नही दिया जा रहा ?
स्त्री की इस छटपटाहट को देखकर लगता है कि अभी भी महिलाएं पिछडी हुईं हैं । राजनीति तो पुरूष के अहम् का अखाडा है , यहाँ ओरतों का क्या काम लेकिन प्रजातंत्र को कायम रखने के लिए एकाध महिला को साथ मैं रखना पड़ता है , इसका मतलब यह नहीं कि पूरी गृहस्ती छोड़कर भीड़ उनके सर पर सवार हो जाए । बागी , दागी , घूंस खोर ,चापलूस लोगों से घिरे अपने को पुन्छल तारा सा समझने वाले नहीं चाहते कि महिलाएं उनके दरवार मैं आकर कुर्सी हथिया लें । उनके इलाके के गरीब , निरीह महिलाओं के आँचल की छाँव पाने की सोचने लगे हैं । दबंग , बडबोली , बिंदास , चतुर , जुझारू सुकुमारियों की क्या बिसात कि दडबे मैं सेंध लगा सकें ।
चुनावी उत्सव मैं उन्हें सब्जबाग दिखाए जाते रहेंगे । राजनीति के समर का सिपाही बनने के लिए वे घर का मोह त्याग कर , शिशुओं को पालनों मैं पटक कर , बुजुर्गों को चोराहों पर छोड़कर , यहाँ से वहाँ दौड़ती नज़र आयेंगीं , एक दिन अध्यक्ष महोदय कह देंगे मैडम !! आपको टिकट नहीं मिल सकता , अभी आप जूनियर हैं .....
रेनू ......
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