Thursday, October 16, 2008

फैशन का सह - वास


'' लिव इन रिलेशन " जैसा जुमला पूरे भारत मैं आम हो गया है , पांचवी फेल विद्यार्थी भी इसे बखूबी जानता , समझता और चाहता है । कारण बहुत स्पस्ट है कि आजकल जबकि कलियुग अपने चरम पर पहुचने का भरसक प्रयास कर रहा है , मानवीय संस्कृति का आकर्षण धर्म , अर्थ ,काम और मोक्ष मैं से अर्थ और काम पर आरुड है । हमारी दृष्टि जहाँ तक दौड़ती है , पूरी पृथ्वी पर अर्थ ने तवाही मचा रखी है , लक्ष्मी जी भी चंचला हो गईं हैं , उनका मन चंद्रमा की कलाओं सा भ्रमित हो रहा है , कभी इस व्यापारी के गल्ले से निकल उधर जातीं हैं , कभी उधर से जाने कहाँ - कहाँ । आम जनता जिसे मानव कहा जाता है लक्ष्मी और कुबेर की इस मैराथन दौड़ का दर्शक बन गया है । मूक बनकर रोटी की कीमत का हिसाब लगता रह्ता है ।

अर्थ की बात का कोई ओरछोर नहीं रहेगा अनंत वार्ता हो जायेगी , अब काम की बात की कर लें .... रिलेशन बनाना आज जरूरत से जायदा फैशन बन गया है , स्कूलों की तरफ़ रुख करिए जिस लड़के - लड़की के पास मित्र मंडली मैं यदि विपरीत लिंगीय मित्र नही तो उसे पिछड़ा हुआ समझा जाता है । दूसरे मित्र उसे इस तरह घूरते हैं मानो उस व्यक्ति की नपुंसकता के बारे मैं पता चल गया हो । छोटे बच्चों की आधुनिक धारणा का ज्ञान तो हो गया , अब युवा वर्ग की बात कर लें .... विपरीत लिंगीय आकर्षण एक प्राकर्तिक गुन तो है सब जानतें हैं लेकिन किसी लड़की के साथ बात करना , समय बिताना , मन हल्का करने मैं लड़का सहज महसूस करता है , बजाय लड़के के साथ । यही स्तिथि लड़की के साथ लागू होती है । काम भाव , विचार की उत्तेजना स्पर्श - रूप से ही तृप्त नहीं होती उन्हें रस पान के अनुभव की प्रयोगात्मक प्रक्रिया साथ रहने के लिए बाध्य करती है ।

भारतीय समाज मैं इस रिश्ते की आवश्यकता की नींव तभी पड़ गई जब बेटियाँ घर से बाहर जाकर पड़ने लगीं और नौकरी पर जाने लगीं । दोस्त के साथ रहना दौनों को अधिक सुबिधाजनक और संतुस्ट करने वाला सौदा सिद्ध हुआ । खर्चे का बंटवारा , मकान का किराया , घूमना - फिरना , अनचाही छींटा कसी से बचाव , सुरक्षा की अनुभूति और सबसे महत्वपूर्ण वासनात्मक विकृतियों का नम्रता पूर्वक उपभोग आसन सा हो गया । आधुनिक युवाओं को आजादी के नाम पर यही रिश्ता चाहिए जो उन्हें समाज मैं श्रेष्ठता का भान करता है ।

भारतीय माता - पिता भी इस रिश्ते को मान्यता दे रहें हैं , बच्चों की खातिर क्योंकि उन्हें मालूम है कि भटकने से अच्छा है एक के साथ रह रहा है शायद शादी भी कर ले । तो " लिव इन रिलेशन " का यह जल अब भारत मैं पैंठ बना चुका है , इसे गायव करना आसान बात नहीं , जब ऊपर कि ओर मुंह करके थूक दिया है तो , गंदगी से डर कैसा ।

वह दिन दूर नही , जब भारतीय संस्कृति की चिन्दियाँ कौडी के मोल गलियों मैं आहें भरेगी , अनचाहे गर्भ लेकर हकीमों के पास दस्तक देंगी , नारी फ़िर से एक वस्तू , " यूज एंड थ्रो " होकर रह जायेगी ।

रेनू शर्मा .....

1 comment:

Unknown said...

sanskratik patan ki pida aur kusanskrati ko swikaar karne ki majoori..bahut aachha likha hai,