Saturday, October 4, 2008

दहशत के तीर्थ


सदियों से लोगों मै धारणा थी कि तीर्थ करने गए तो लौटना मुश्किल होगा क्योंकि मार्ग की जटिलता , दूरियां , बीमारी , वृध्धावस्था , जीवन से विरक्ति और लुटेरों , चोरो , डकैतों का हमला भी जीवन की अनिश्चितता के लिए प्रमुख कारन था । इस विज्ञान युग मैं इन्सान जहाँ चाँद , सितारों की दूरियां तय कर रहा है , शनी के छल्लों पर नृत्य कर रहा है , पर ग्रहियों से दोस्ती का हाथ बढा रहा है , तब ऐसी कौन सी खामी है जो धार्मिक स्थलों पर हादसों और दुर्घटनाओं को निमंत्रण देतीं हैं ।

इन्सान काल के गाल मैं समाता जाता है और सरकार हाथ मलती रह जाती है कोई उपाय नही सूझता उसे , दर्दनाक हादसे हमारे मस्तिस्क को झकझोर देतें हैं । हम जानतें हैं की जब मौत आती है तब बिधन बन जाते हैं , कारण पैदा हो जाते हैं और अकारण लोग परलोकवासी हो जाते हैं । हमारी सरकारें किसी भी धार्मिक उन्माद को शुरू करने से पहले पूरी व्यवस्था क्यो नहीं करतीं ? क्या वे चाहतीं हैं की लोग इसी तरह मरते रहें , तो शायद जनसंख्या कम हो जायेगी ? हमारे राजा लोग लापरवाही का बिगुल बजाकर बिल मैं छुप जातें हैं , जनता खून से लतपथ मंदिरों के गलियारों मैं तमाम हो जाती है ।

धर्म के नाम पर धन उगाने की मशीन बने धार्मिक स्थल नरक स्थल बन गएँ हैं , हर क्षेत्र मैं खीचा तानी चल रही है

जिसके पास धन नहीं वह किसी भी कीमत पर पाना चाहता है , संतोष कभी नहीं । दूर दर्शन के रुपहले पर्दे पर संभाषण करने वाले तथाकथित उपदेशक भी संतुस्ट नहीं , माया जाल , इंद्रजाल फैलाकर लोगों को सम्मोहित कर गुमराह करने मैं लगे हैं । इन उपदेशों से यदि परीक्षा ले ली जाए तो सब फ़ैल हो जायेंगे , पैसा चढा देंगे , हार पहना देंगे , घंटों बैठे रहेंगे लेकिन आत्मा की शुद्धता के लिए कुछ नहीं करते । इस आस्तिकता का क्या फायदा ?

आधुनिक तीर्थ स्थलों पर जो दहशत का काल पहरा लगा कर बैठा है उससे मुक्ति के उपाय खोजने होंगे । इन यमदूतों पर विजय पानी होगी । बच्चों , बुजुर्गों , स्त्रियों के बीच स्नेह , ममत्व के मंत्र जपने होंगे तब ही शान्ति सम्भव होगी ।

रेनू शर्मा ......

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