Saturday, August 30, 2008

बहकते कदम


कहते हैं किशोर अवस्था फिसलती है , युवा अवस्था भटकाव लाती है , प्रोणावस्था ठहराव लाती है और वृद्धावस्था इंतजार करती है । किशोर बच्चों की बात करें , यह लोग नित नई आने वाली टेक्नोलोजी की तरफ़ फिसलते रहते हैं । इश्तहारों की भरमार उन्हें विरक्त नही होने देती । माता - पिता के सामने लम्बी होती फेहरिस्त अवसाद तक ले जाती है । कभी माता - पिता को , कभी किशोर को ।शिक्षा से भटकाव लाजमी सा हो जाता है ।

फिसलते कदम कभी नशे की गिरफ्त मै आते हैं कभी बेइन्तहा चाहत के भ्रम का शिकार होते हैं , यह चाहत उनके मोबाईल , बाइक , गर्ल फ्रेंड से या फैशन से भी हो सकती है । किसी भी प्रकार के आभाव को असहनीय समझ आत्मपीडा देने तक जघन्य कृत्य कर बैठते हैं ।

स्कूल मै साथियों के बैग से पैसे , पैन , किताब ,खाना तक चोरी करना इनकी आदत बन जाता है । युवा वर्ग की बात करें , किशोरावस्था की आदतें पीछा नहीं छोड़तीं । कुछ नए आयाम और जुड़ जातें हैं , वासनात्मक उत्तेजना इनके नियंत्रण से बहार हो जाती है , तब दोस्तों की टोली किसी आजादी की दीवानी युवती को सामूहिक हवस का शिकार बना मर्दानगी का परचम लहराते कहीं लूटमार करते हैं , कहीं चोरी करते हैं , कहीं सुपारी लेतें हैं और कहीं ब्लास्ट करने को सहर्ष तत्पर हो जाते हैं । इनको धन , वैभव , एश्वर्या , फैशन , सब कुछ आकर्षित करता है । हर पल भटकाव है ।

बेरोजगारी , अज्ञानता , अशिक्षा और सम्मोहन के माया जाल मै उलझे युवा अपनी राह भटक जाते हैं । अत्यधिक डिप्रेशन की स्तिथि मै आत्महत्या जैसे कायरता पूर्ण कार्य करने मै भी नही हिचकते ।

हम लगातार ध्यान , योग , आध्यात्म की बातें करते हैं लेकिन स्कूलों , महाविद्यालयों तक बच्चों की मानसिकता का परीक्षण भी नही किया जा रहा , उन्हें बेसिक सुबिधायें भी नहीं मिल रहीं , इन बातों को कौन नही जनता ?

हर तरफ़ राजनीती का जंजाल बिखरा हुआ है । राजनेतायों के लिए कोई शेक्षिक योग्यता का मापदंड निर्धारित नही कर सकते ??? यदि हाँ , तो भारत का नैतिक ढांचा कुछ और ही होगा । तब हमारे भटकाव और फिसलन सब दूर हो जायेंगे ।

रेनू शर्मा

1 comment:

Anwar Qureshi said...

अच्छी पोस्ट है बधाई ...