Thursday, August 28, 2008

कोसी का तांडव


जीवन दायिनी नदियों के किनारे ही मानव अपना सम्पूर्ण जीवन बिता देता है , सदियों से संस्कृतियाँ नदियों के प्रवाह के साथ ही घटती और बढ़ती रही है । पर , जब यही संरक्षिका आवेश और आवेग के भंवर मई मानव को जकड लेती है , तब प्रलय आना अवश्यम्भावी है ।

बिहार की नीरंजनी कोसी नदी ने अचानक अपना रुख नही बदला है , बरसों से इस तांडव की तैयारी चल रही थी । कहीं पुल दरक रहे थे , कहीं किनारे सरक रहे थे , कहीं तट- बाँध खिसक रहे थे और कहीं लबालब भरे बाँध भर भराने की कगार पर थे, फ़िर भी प्रशासन खामोश बैठा मौत की आहट सुन रहा था।

नीरवता, सन्नाटा, भायाबहता जो अब पसर रही है सब कोसी के तांडव का फल है। देख, सुन कर बाद की विभीषिका को अनुभव नही किया जा सकता, उनसे पूछकर देखो, जो अपना सब कुछ कोसी को समर्पित कर प्राण बचाने तिनके के सहारे लटके हैं। उनकी आंखों की बेचैनी, घबराहट और सूखे को कोई महसूस नही कर सकता जो अपने बुजुर्गों, बच्चों और महिलाओं को लेकर दर-ब-दर भटक रहे हैं।

जल प्रलय का नृत्य तो हम देख रहे हैं राजा के पाप अब प्रजा का नाश कर रहे हैं क्योंकि पाप के साये मै रहना भी पापी बना देता है । कौन जाने ? इस आपदा का क्या कारण है ? पर , महलों मै रहने वालो !! अब गुना भाग मत करना , क्योंकि हजारों की भिक्षा कटोरे मै आ चुकी है , कूट नीति के दांव पेंच पात्र मै सुराख़ करने के लिए शुरू हो गए होंगे । कोसी माता !! कोसों तक तुम सबकी आत्मा को छोड़ने वाली नही है ।

सावधान रहना दुस्टो !! निरीह जनता को रोटी दो , पानी दो । आपदा मै घिरे लोगों को जीने का सहारा दो । इंसानियत की क़द्र करो । हे ! जल देवता !! सबको सद बुद्धि दो ।

रेनू शर्मा ...

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