Saturday, August 23, 2008

हैप्पी बर्थ डे कृष्ण

मायावी श्री कृष्ण हजारों गोपियों के साथ महारास लीला रचते हैं। नृत्य लीला के समय सबके साथ नृत्य करते मोहन अपनी मोहनी विद्या से सभी गोपिकाओं को सम्मोहित कर ध्यानस्थ कर देते हैं। वे गोपिकाएं मोह जाल में आबद्ध यह समझती हैं की कृष्ण केवल उन्ही में समाये हैं, कृष्ण सिर्फ़ उन्ही के साथ नृत्य लीला में मग्न हैं, वे सभी अभिभूत हो नृत्य की परमावस्था में लीन हो पूर्णिमा की रात स्वयं को पूर्ण रूपेण कृष्ण को समर्पित कर देती हैं।
गोपियों के सखी भाव को पर्मनान्दायक व चिरास्मार्निया बनने के लिए और गोपियों की पर्मेछा को सरस बनते हुए पूर्णता प्रदान करने के लिए श्री कृष्ण शरद पूर्णिमा की चटक रात्री का वरन करते हैं। यमुना की शीतल लेहेरों पर नौकायन करते हुए इह-लोक पर-लोक के मधुरिम पलों का रसपान करते हुए कृष्ण पृथ्वी के चक्र से मुक्ति के लिए अपनी सखियों को आंदोलित कर रहे थे।
चंद्रमा अमृत बरसा कर संपूर्ण ब्रिज को अमरत्व के औरा से संरक्षित कर रहा था। देवगण, सितारों से बिखर कर मंगल कामनाएं भेज रहे थे, मानो संपूर्ण पृथ्वी कृष्णमय हो गई हो और कृष्ण कण कण में समां गए हों। उसी महारासलीला को पृत्वी लोक पर अभिनीत करने वाले श्री कृष्ण को उनके जनम दिन पर कोटिशः शुभकामनाएं।
मरियादित , निश्छल , चिरकालीन स्नेह और सखत्व के माध्यम से श्री कृष्ण ने महारासलीला रचकर योग, वैराग, समर्पण, नियंत्रण, अनुशाशन, समत्व और एकत्व का पाठ पूरे पृथ्वी लोक को समझाया। ऐसे कृष्ण बार- बार इस पृथ्वी पर जन्म लें। कृष्ण के श्री चरणों में साष्टांग प्रणाम समर्पित है।
रेनू शर्मा

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