Friday, August 22, 2008

दादी कहिन

बीता समय तो पंख लगा कर उड़ गया , उड़ती रज सबके माथे पर तिलक लगा रही है । सुना है , हर भारतीय जो अपना सर्वस्व न्योंछावर करने को तत्पर थे , मंदिरों , मस्जिदों , गुरुद्वारों मई शपथ लिया करते थे , कि हम भारत माँ को आजाद करके ही रहेंगे , चाहे उसके लिए जान ही क्यो न कुर्वन करनी पड़े ।

दादी बता रही थी , कि हम सफ़ेद साड़ी पहन कर एक बसता लटका लेतीं थीं , उसमें हमारे मिशन कि जानकारियां होतीं थीं , जनता के लिए अपील होती थीं , हमारे जान्वाज भाइयों के लिए उमंग , साहस और हिम्मत होती थी । गली , मुहल्लों , खेतों खलियानों से होते हुए हम नगरों तक पतंग की तरह उड़ा करते थे । न खाने का होश , न सोने का , बिटिया !!! बड़ी मेहनत और एकत्व से मिली है यह आजादी । हम तो न देख पाएंगे , पर तुम भोगना आजादी का सुख । दादी एक लम्बी निःश्वास के साथ नए - नए किस्से सुनाया करतीं थीं । हर पल एक दिल दहला देने वाला हादसा और रगों मई खून के नाले बहने वाला जोश उनकी कहानियो से झरता था ।

दादी आज जीवित होतीं तो भी मर गईं होतीं , क्योंकि नई पीड़ी का पतन उनसे देखा नही जाता । हमने तो आजादी के मायने ही बदल दिए हैं । माना की हम विज्ञान की रह्श्यमई गुत्थियों को सुलझा रहें हैं , अन्तरिक्ष मैं विचरण कर रहे उपकरणों पर नियंत्रण कर रहें हैं , साथ ही भारतीय अस्मिता को बेपर्दा कर संस्कृति के हनन का जुर्म भी कर रहे हैं ।

विद्वान कहते हैं की ग्लोवल वार्मिंग हो रही है क्या ? वे नहीं जानते क्यों हो रही है ?? हजारों हरे भरे विरिक्षों को काटा जा रहा है । कोई पेड़ एक दिन मई विशाल होता है क्या ? संतुलन के लिए कोन पौधे उगा रहा है ? हम पृथ्वी की उर्जा का निरंतर पान कर रहीं हैं । भीतर से सुखा दिया है धरती को । नतीजा हम सबके सामने है । प्रकृति का नियम है बदलाव , लेकिन हमारे कर्मों का दुष्परिणाम है की हमें आपदाओं का सामना करना पड़ रहा है ।
दादी बतातीं थीं की उस समय होने वाले यज्ञों की धूमलेखा अन्तरिक्ष मै फेलकर ओजोन परत को संरक्षित कर मानवता का विकास करती थी । आज निरंतर आतंकी घटनायों का ग्राफ हमें आंदोलित करता है । लम्हा - लमहा सिसकती प्रथिवी के अस्तित्व की रक्षा करनी चाहिए ।
अब किसी विशेष ऊर्जा , शक्ति , परमतत्व और ज्ञान की आवश्यकता है । स्वतंत्रता का प्याला कॉकटेल से अब छलकने लगा है । दादी अब ये तमाशा देखने के लिए नही है , और न अमर शहीद । क्यों न हम सभी को नमन करें ।
रेनुशार्मा

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