Saturday, August 16, 2008

१५, अगस्त 2008

अपनी आजादी भोगने रात - पानी अभ्यारण की काली मखमली वीरान सड़क पर घने जंगल के बीच , प्रकर्ति के सानिध्य मै अपने जीवन साथी के साथ घने शागौन विर्क्षों के मध्य उस प्रकृति की स्वतंत्रता का आनंदानुभव कर रही थी । एक ओर घने शागौन का जंगल , दूसरी ओर वीरान अडिग खड़ी पर्वत श्रृंखला ऐसी लग रही थी मानो प्रथ्वी के ये संरक्षक योग की परम मुद्रा मै ध्यानस्थ हैं । बुधनी का वन क्षेत्र हमें आकर्षित कर रहा था , मानो कह रहा था कि मेरी तरह स्वतंत्रता का पान करो , नदी , झरने , खड्ड , दर्रे , निश्छल पर्वत माला हमें पाठ पढ़ा रहे थे । हमें अपनी ओर खीच रहे थे , मानो यह वादी हमारा दिल खोल कर स्वागत कर रही थी ।

एसा अपनापन , इतना स्नेह , इतनी भव्यता आज के इन्सान तो दिखा भी नहीं पाते । रास्ते मै कई स्थान पर मजदूर बैठे दिखाई दिए , चरवाहे अपने जानवरों के झुंड के साथ माटी की सोंधी सुगंध से तरबतर हमें मुस्कराहट का तौहफा दे रहे थे । मैं उनकी निश्छलता , समत्व , एकत्व और ममत्व से प्रभावित हो , गदगद हो रही थी ।

हम घुमावदार राह पर स्वतंत्र चहलकदमी करते हुए , नर्मदा तट तक जा पहुंचे । घनघोर जल कोलाहल के साथ मां , नर्मदे !! निरंतर प्रवाहित समय गति का बहन करा रहीं थीं । वहीं एक छोटे से राम मन्दिर मै सावन मॉस की अखंड श्री राम चरित मानस का पाठ निरंतर जारी था , जो हमारे आध्यात्म को सुद्रण कर रहा था । नर्मदा जल परियोजना के तहत शागौन विर्क्षों का काटा जाना मेरी पीड़ा को बढ़ा रहा था , हाँ , कुछ पाने के लिए , बहुत कुछ खोना पड़ता है । यही सोचकर आगे बढ़ गई ।

अत्यधिक आत्मसंतोष के साथ हमारा स्वतंत्र ता अभियान सार्थक एवं आजीवन सुख प्रदान करने वाला , प्रक्रति के साथ मिलकर संपन्न हुआ । औबेदुल्लागंज की मशहूर मावावाटी से मुंह मीठा करते हुए हम लोग वापस हो लिए ।

रेनू शर्मा

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