Thursday, September 4, 2008

जल प्रलय ऐसा होता है

शास्त्रों मै पढ़ा करता था कि दैवीय आपदा ऊपर से आती है , जब देवता आक्रोशित हो जाते हैं तब जल प्रलय , अग्नि कांड , सूखा , बाढ़ , आंधी , तूफान , सुनामी , ज्वालामुखी सब प्रलयंकारी गति बिधियाँ बढ़ जाती हैं । तब सोचता था कि ऐसा कैसे सम्भव होता होगा ? मन दुबिधा मै अटक जाता था । फ़िर लगता इतनी बढ़ी दुनिया है कहीं भी हो सकता है । पर जब भारतीय तटों पर सुनामी की दस्तक हुई तब पता चला सब कुछ सम्भव है । २६ जनवरी को गुजरात मै भूकंप आया तब समझ आया कि धरती कि दोलायमान स्तिथि इसे कहते हैं ,

यूँ तो , पर्थिवी पर हम टुकडों मै बंटे हैं , जब कोई विपत्ति आती है तब इंसानियत के नाते सबकी परवाह कीजाती है , अब बिहार मै कोसी नदी अपना विकराल रूप दिखा रही है , तब हमें समझ लेना चाहिए कि समय करवट ले रहा है । युग परिवर्तन कोई सामान्य बात तो हो नही सकती , जब हमारे जीवन का छोटा सा बदलाव हमें हिला कर रख देता है , फ़िर यह तो भयंकर आपदा है । व्यक्ति जीवन भर इस हादसे को भुला नही पाता है ।

कोसी नदी का इसमे क्या दोष ? हमने योजना बद्ध तरीके से कम ही नही किया , करोड़ों रुपये खर्च किए जाते हैं लेकिन कार्य कागजों तक ही सीमित रह जातें हैं । प्रशासन की घनघोर लापरवाही का नमूना सामने आता है , बाँध का रख रखाव नियमित नही किया गया , तट बाँध कमजोर होते रहे , नेपाल ने जल की धारा को विकराल कर दिया , जल प्रवाह इतना खतरनाक हुआ कि किनारे तोड़कर धरती पर फ़ैल गया । गाँव पानी मै समां गए , घर परिवार नदिया मै बह गए , जानवरों की कोई कीमत ही नही रही , कितने पार हुए कितने कोसी मै समां गए किसी को नही पाता ।

जल प्रलय का यह तांडव देखकर लगा कि क्या होता होगा जब धरती जल मग्न हो जाती होगी ? हमारे बीते समय मै भी इस तरह के प्रकोप होते रहे हैं , कभी आसमान से बिजली गिरती , कभी उल्काएं बरसती , कभी सूर्य की तपन जीव जन्तुयों का नामोनिशान मिटा देती । पृथ्वी पर इन्सान इतनी भी आसानी से नही रह पाता है । यहाँ रहना किसी परीक्षा से कम नही ।

पानी की बूँद और रोटी के दाने के लिए लोग तरस रहें हैं । व्यक्ति अपना घर परिवार सब छोड़ कर सड़कों पर आ गए हैं । रस्ते , पुल , पेड , यातायात के साधन सब जलमग्न हो गए हैं । जमीन का नक्सा ही बदल गया है । नदी का किनारा ,घर , दुकान , पोस्टर ,अस्पताल , बस अड्डा सरे पहचान चिन्ह पानी मैं डूब गए हैं । प्रशासनिक लापरवाही ने सब इंसानों को मुश्किल मै डाल दिया है । गरीवों का जीवन छीन लिया ।

भटकते लोगों की किसी को चिंता नही , हवाई सर्वेक्षण कर रहे है उनका आकर , शरीर की भाषा , भाव , आन्ख्हों की बेशर्मी , सब बतादेता है की उन्हे इस सबमें बड़ा आनंद आ रहा है । मैं हतप्रभ , बदहवास सा लोगों को कभी तसल्ली देता , कभी अपना पानी देता , कभी खाना देता , मेरे सरे कपड़े बंट गए , रुपयों से भरा पर्स खली हो गया , आंखों का पानी सूख गया , अब सोचता हूँ लौट चलूँ । कागज की दुनिया मै फ़िर से एक कोसी की विकरालता का ताना बना बुनना है । कभी सोचता हूँ इन लोगों के साथ मिलकर दहाड़ मारकर चीखुं , गला फाड़कर रोऊँ , सुबकने से मेरी पीड़ा बढ़ रही है । छाती मै घुटन सी होती है , रहः - रह कर हूंक सी उठती है । क्या करुँ ? दैवीय आपदा ने मेरी सोच बदल दी है ।

एक साथ हम सब अपना दुर्भाग्य भी देखतें हैं । भूंख , प्यास , भय , पीड़ा , गम , सब कुछ बांटते हैं । जीवन के लिए मारामारी , अराजकता , लूटमार , औरतों , युवतियों के साथ व्यभिचार , बेटियों के साथ छेड़ खानी , अथाह पानी के सन्नाटे मै जिस्म बेपर्दा किए जा रहे थे । धन के लिए अपनी संतान को कोसी मै बहा रहे थे उनके माता पिता । सब कुछ देखने के बाद लगता है की अब जल प्रलय कभी न हो , फ़िर पुनरावृत्ति कभी न हो , इस कामना के साथ ।

रेनू शर्मा ......

2 comments:

संगीता पुरी said...

सब कुछ देखने के बाद लगता है की अब जल प्रलय कभी न हो , फ़िर पुनरावृत्ति कभी न हो , इस कामना के साथ ।

सही कहा ।

Renu Sharma said...

dhnyawad sangeeta ji .