Thursday, August 14, 2008

राजा का दंड

कहतें हैं कि सांप के काटने पर बचा जा सकता है , लेकिन राजा के दंड से कोई नही बच सकता । यह कहावत सच साबित हो रही है ग्रामीण लोगों पर , एक तो उनकी जमीन साम , दाम , दंड , भेद का उपयोग कर छीन ली गई , रुपयों के मामले मै लूट लिया गया । उन लोगों ने विद्रोह किया तो पुलिसिया लोगों ने जो राजा के बिना सोचे बिचारे कदम उठाने वाले दंड रुपी हाथ होतें हैं , जहाँ देखा कि लोग सरकार के ख़िलाफ़ बगाबत कर रहे हैं , वहां गोली दागने का काम शुरू हो जाता है । बेदर्द कमर पर हाथ टिकाये बड़े आराम से सरे आम शूट करतें हैं । पूछने पर कहते हैं अरे !! आपको नही पता तमाम वाहन फूंक डाले , सरकार का नुक्सान किया , अशांति फैला रहे हैं सो अलग । तो भाई ! उनकी बात राजा तक क्यों नही पंहुचा देते , बैठकर उनका दर्द , उनकी पीड़ा सुन लीजिये , क्या चला जाएगा ? लेकिन कोण सुने ?? यहाँ तो खुला शूटिंग का खेल चल ता है ।
हम कैसे कह सकतें हैं कि भारतीय बड़े ग्यानी होते हैं ?? और शान्ति के मसीहा बनकर विश्व को पाठ पड़ने वाले हैं ।
जम्बू झुलस रहा है , अशांति की ज्वाला मै , जमीन के तुकडे के लिए मर - खप रहे हैं । अंतत : तो सब यहीं रहना है चाहे शिव जी उस जगह को बरत लें या कोई और ।
पूरी पृथ्वी पर अहम् की लडाई चल रही है , उसके लिए इंसानियत की हत्या की जा रही है । कोई पदच्युत किया जा रहा है , कहीं आरोप - प्रित्यारोप का घिनोना खेल चल रहा है , कहीं सत्ता के लिए दांव - पेंच रचे जा रहे हैं ।
कोन मानेगा कि हम पड़े -लिखे मानव हैं ? भारतीय लोग अपनी सभ्यता और संस्क्रती का पतन स्वयं ही कर रहे हैं ।
राजा भी बीच चौराहे पर दंड कि कार्यवाही कर अपने होने का अहसास दिखाता है । हम लोग बुरी तरह से दांसता की बेडी मै जकडे हैं । हम ही हमारे अस्तित्व के लिए खतरा बन गए हैं । इस समय न तो भगत हैं ,न आजाद , न बिस्मिल , न सुख देव , न हजारों वीरांगनाएँ हैं ।
बिना कोर्ट कचहरी का राज दंड कब तक चलता रहेगा ? तमाशाई राज सैनिकों !! सामाजिक मर्यादायों का उलंघन मत करो !! अब तो , स्मरण कर लो कि अहिंसा से सब कुछ हासिल किया जा सकता हैं ।
रेनू शर्मा

1 comment:

राज भाटिय़ा said...

बहुत सुन्दर ओर सच लिखा हे आप ने , धन्यवाद