Wednesday, July 30, 2008

भय की आँख - मिचोली

रात का अँधेरा जब मिट गया ,तब सूरज की रौशनी के साथ ही भय का साया भी चारो और फ़ैल गया ,
जहाँ देखो वहां लोग सड़कों पर जमा हो रहे थे ,क्यों कि जगह -जगह पर बोम्ब मिल रहे थे ।
कोई खुरापाती हमारे सुख चैन को मिटा देना चाहता है ,हम तमाशा देख रहें हैं झरोखों से ,छतों से ,गलियों से ,चोराहों से और छटपटाते दिल से ।
नन्हीं पीढी भय कि इस आँख - मिचोली कि अभ्यस्त सी हो रही है ,उनकी आँखें सूख रहीं हैं ,मन के कोने मै आक्रोश पनप रहा है ,
मस्तिस्क की ऊर्जा इस घिनोने कुचक्र को समझने मै बरबाद कर रहीं हैं ।
मानवीय रक्तपात का यह मंजर बंद होना चाहिए ।
रेनू शर्मा

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