हफ्ते मैं दो दिन ,
सींग की ,
कंघी से बुहारे ,
बालों की ,
लटों से निकले ,
बालों की तेह में छुपे ,
जूँ वाले बालों को ,
धागे की कतली से कात कर ,
लपेटे गुछे को ,
टीक दोपहरी मैं ,
टूटी साइकिल पर ,
काले बदबू बसे कपडों मैं ,
मैल जमे त्वचा वाले ,
फेरी वाला ,
बार - बार हाथ डालने से ,
काले किनारे वाले थैले से ,
बालों के बदले एलाइची - दाना ,
भुना चना ,
तराजू के फूटे तले पर तौलते ,
उस निरीह से ,
उलझ पड़ती है वोह ...
कम क्यों देते हो ?
तब ,
खजला सा फेरी वाला ,
बिफर जाता है ,
जा ... टीन - टप्पर कबाड़ ले आ ,
मीठे - दाने ॥
क्या बालों से ही खायेगी ?
वोह ...कभी हफ्तों से समेटे ,
बालों को घूरती ,
कभी उस कबादी को ,
कूड़े के ढेर पर उड़ते,
बालों के गुछे पर झपटती है,
चल ... अब दे मीठा दाना ...!!
-रेणू शर्मा
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