पिता ,
आंखों से बरसता रिश्ता है ,
होंठों से टपकता स्नेह है ,
पिता भ्रकुटियों से देता दंड है ,
दंत्पंक्ति से बिखेरता अट्टाहस है ,
पिता हथेलियों में समेटता बचपन है ,
सीने पर घर बनाता आश्रय है ,
पिता ऊँगली के सहारे ,
राह दिखाता दीपक है ,
सपनों को साकार करता,
देवदूत है ,
पिता,
पीढ़ी दर पीढ़ी,
पिंड बांटता ,
वसीहत है ।
संस्कारों की सीख देता,
मदरसा है ,
पिता,
अस्तित्व की बुनियाद है,
पोषण की आधार शिला है ,
पिता,
आध्यात्म का अध्याय है,
योग वैराग का विवेक है ,
पिता,
नींव का पत्थर है,
वर्णमाला का अकार है ,
मस्तिष्क उर्जा की कुंजी है ,
पिता सर्वोपरि है ...
- रेणू शर्मा
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