Wednesday, July 23, 2008

पिता

पिता ,


आंखों से बरसता रिश्ता है ,


होंठों से टपकता स्नेह है ,


पिता भ्रकुटियों से देता दंड है ,


दंत्पंक्ति से बिखेरता अट्टाहस है ,


पिता हथेलियों में समेटता बचपन है ,


सीने पर घर बनाता आश्रय है ,


पिता ऊँगली के सहारे ,


राह दिखाता दीपक है ,


सपनों को साकार करता,


देवदूत है ,


पिता,


पीढ़ी दर पीढ़ी,


पिंड बांटता ,


वसीहत है ।


संस्कारों की सीख देता,


मदरसा है ,


पिता,


अस्तित्व की बुनियाद है,


पोषण की आधार शिला है ,


पिता,


आध्यात्म का अध्याय है,


योग वैराग का विवेक है ,


पिता,


नींव का पत्थर है,


वर्णमाला का अकार है ,


मस्तिष्क उर्जा की कुंजी है ,


पिता सर्वोपरि है ...


- रेणू शर्मा

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