Wednesday, July 23, 2008

बेटी

छरहरी , सांवली ,
तीखे नक्श ,
उम्र बारह बरस ,
वो ...कड़कती ठंड में,
अंगीठी सुलगाती है ,
खाना बनाती है
,बर्तन मान्झती है..और ,
दौड़ -दौड़ कर ,
सरकारी स्कूल का ,
घंटा बजने से पहले,
गेट पर पहुचती है...
हांफती हुई सी
कक्षा में घुसती है,
पूरे दिन जाने क्या पढ़ती है ?
जाने क्या समझती है ?
लौटते समय रास्ते में ही,
शाम के खाने का मीनू सोचती
बसता पटक कर,
कूये से पानी भरती है ,
सब्जी लाती है ,
फिर ...खाना बनाती है
होते - होते निढाल हो,
बिस्तर पर लुड़क जाती है
होती है ,शाम होती है,
बेटी ...यूं ही,
ज़िंदगी तमाम करती है ॥
-रेणू शर्मा

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