Sunday, July 20, 2008

पूर्णता


सरपट दौड़ती जिन्दगी में ,
ब्रेक ब्रेकर और स्पीड ब्रेकर ,
जब तब आते जाते हैं ,
हम तोड़ते हैं,
लांघते हैं ,
और संभलते हैं ,
जाने कितने विकार ,
उगते हैं पनपते हैं ,
और स्थिरता पाते हैं ,
शरीर का विकार ,
आवश्यक रूप से ,
अनावश्यक घोषित कर,
रिमूव कर दिया जाता है ,
आसानी से ,
बिना किसी विचार के ,
कियोंकी शरीर का विकार पंच्तात्वलीन पदार्थ है ,
हम अंगहीन भी ,
जीवन भोगने में सछ्म हैं ,
और तब स्वयम को पूर्ण समछ्ते हैं ,
जब कि हमारे ,
विकारों का जाल ,
जोंक सा चिपका ,
हमारी आत्मा को ,
भ्रमित करता है ,
मन को बेलगाम करता है ,
सुकर्मों का नाश करता है ,
फिर ,
कियों नहीं ?
हम विकारों का नाश करते ?
उनसे दूर होते ,
काश !हम विकारों को रिमूव कर पाते ,
चल पाते एक पूर्णता की ओर,
उज्जवल प्रकाश की ओर ,
जहाँ ,
सिर्फ शांति है ...प्रकाश है ,
और पूर्णता है ...
- रेणू शर्मा