Monday, September 6, 2010

छिनाल कौन ?

संवेदनाओं को खुलकर व्यक्त करने की हम सभी को आजादी है , अपनी बात हम राष्ट्र ही नहीं सम्पूरण विश्व के सामने रख सकते हैं , यहाँ स्त्री -पुरुष का कोई भेद ही नहीं है , साहित्य में पुरुष के साथ अब स्त्रियाँ भी खूब लिख रही हैं और आश्चर्य की बात है कि स्त्रियों ने भी अपने साहित्य मंडल बना लिए हैं , कहानी , कविता , लेख , व्यंग्य , क्या चाहिए सब कुछ महिला लेखिका से प्राप्त हो जाता है . कम्पूटर के माध्यम से तो लेखकों की आंधी सी आई है , हर दूसरी महिला अपनी बात सामने रख रही है .
जो कुछ भी हमारे आस -पास हो रहा है वही सब लिखा जा रहा है , महिलाएं अधिकांशत : राजनीति  से दूरी बनाकर चलतीं हैं इसलिए वहां की उदंडता वे नहीं दिखा पातीं हैं , फिर घर -परिवार और समाज की वही बातें  बचतीं हैं जो एक औरत को कचोटती हैं या परेशान करती हैं , वही लिखा जाता है , उसमें स्त्री -पुरुष के सम्बन्ध और पुरुष का बिंदासपन ही अधिक होता है .
प्रकृति के बारे में सोचना तो अब , पुरुषों ने भी छोड़ दिया है , फूलों , कलियों और लताओं की बात अब कोई नहीं करता है , बादल कब आकर बरस गए पता ही नहीं चलता है , मौसम की करवटें अब कोई नहीं महसूस कर पाता, रिश्तों की नग्नता पर लिखना अब आसान हो गया है , वहां सौन्दर्य , लालित्य , स्पर्श की अनुभूति परिपक्व होकर उजड़ चुकी है , 
साहित्य का मसाला अब , बदल गया है , जब तक , किसी कहानी या लेख में काम विषयक उत्तेजना न हो तब तक , पाठक को पढने में मजा नहीं आता और साहित्य जगत में रचना को उच्चकोटि का नहीं माना जाता , जो स्त्री जितनी आजादी से शब्दों का जाल बुनती है वही रचना पठनीय बनती है , यदि महिला साहित्यकार स्त्री -पुरुष के संबंधों पर पुरुषों के सामान अपशब्दों का प्रयोग करते हुए बिंदास लिखती है तभी वह साहित्य समाज की सदस्य बन सकती है , कहने का आशय है कि पुरुषों को यही सब चाहिए ,रचना ऐसी हो जिसे चटखारे लेकर पढ़ा जाये , लोगों के बीच जिस विषय कि चर्चा की जा सके , इसके बाद भी किसी कुलपति द्वारा लेखिका को छिनाल जैसे शब्द से संबोधित करना कितने आश्चर्य की बात है . 
अधिकांश पुरुष छिनाल शब्द का प्रयोग महिला को अपमानित और प्रताणित करने के लिए ही करते हैं , अपशब्दों से दंड देने का काम पुरुष बखूबी करता है , कोठियों के बंद दरवाजों के पीछे मर्द सिर्फ मर्द ही होता है और औरत निहायत स्त्री ही होती है , मानसिक , शारीरिक यंत्रणा भोगती वह एक बंदनी  ही होती है , पुरुष सम्पूर्ण आजादी को भोगता हुआ मित्र मंडली के बीच ठहाके लगाता हुआ किसी नारी के चरित्र पर लांछन ही लगा रहा होता है , उस पल उन्हें याद नहीं रहता कि उनके घरों में भी औरत और बेटियां हैं , उन्हें भी कोई अन्य छिनाल कह सकता है , हाँ इसका अपवाद भी हो सकता है . 
यही कुछ वजहें हैं जिसके कारण कुलपति भी एक औरत को सरेआम गाली  दे सकता है , लेकिन प्रश्न वहीँ का वहीँ है कि छिनाल कौन ?
रेनू शर्मा ... 




3 comments:

PN Subramanian said...

बात बहुत गहरी उतर गयी. इसे पुरुष विशेष की मानसिकता की संज्ञा से विभूषित न करें. एक असभ्य व्यक्ति के उदगार हैं. उनकी माता जी के लिए भी इन अल्फाजों का प्रयोग यदि किया जाता तो?

Arvind Mishra said...

आप संस्कृत की अध्येता हैं -किन विमर्शों में अपनी ऊर्जा का अपव्यय कर रही हैं ?
कुछ नया और मौलिक लिखिए !

Renu Sharma said...

han ji , sahi kaha aapane
jab koi sabhy purush kisi mahila ko sareaam apshabd kahta hai , tab lagta hai kuchh to kaha jay.
shukriya ji.