पुरुष अपनी खींज , लाचारी , कायरता को स्त्री पर उडेलता है , अधिकांश पुरुष बहुरूपिये ही होते हैं , घर -परिवार के बीच उनका व्यवहार कुछ अलग होता है और अपनी मित्र मंडली में वे बिंदास होते हैं | छोटी बातों पर खीन्जना , चिड़ना , झुंझलाना उनकी आदत हो जाती है | बाहर सहन शक्ति का देवता बना रहता है, घर आकर परिवार वालों का जीना हराम करता है | धन का अभाव , नौकरी या व्यापार का न चलना इन नाकामी का श्रेय पत्नी या घर -परिवार को ही देता है | पत्नी तो हर पुरुष की नज़रों में नाकारा ही होती है | फिर कोई कैसे सोच सकता है कि ऐसा पुरुष हिंसा नहीं करेगा ?
हम ,महाजन की बात कर रहे हैं , उन्होंने पहली पत्नी को प्रताणित किया और तलक हो गया , अब ,दूसरी पत्नी के साथ भी वही आचार -विचार दुहराया जा रहा है , नतीजा पूरी दुनियां तमाशा देख रही है | सब लोग कहते हैं पति -पत्नी के बीच में बोलना नहीं चाहिए , पता ही नहीं चलता , क्या सही है ,क्या गलत ? जो लोग पास रहते हैं वे , समझ सकते हैं कि क्या सच है | महाजन की आदतें , व्यसन और लत तो जग जाहिर है , फिर क्या बचता है जानने के लिए ?
एक और महाजन की बात करते हैं , वे दोस्तों की महफ़िल से आधीरात के बाद ही लौटकर आते हैं , बीते ज़माने की सखियों से फोन पर बातें बनाते हैं , वे भी , अपने पतियों से नज़रें चुराकर आशिक से इश्क लड़ा लेतीं हैं , एक दिन महाजन की पत्नी का फोन बज गया , महाजन की तो नींद गायब हो गई जबकि वह कोई रौंग नंबर था |कहने का आशय है कि पुरुष अपने हिसाब से जीता है तब तक सब , ठीक है , जब , पत्नी की तरफ से कुछ आहट हुई , तो तारे दिखने लगे | स्त्री को अपशब्द कहना , हिंसा करना तो पुरुष का जन्म सिद्द अधिकार है , अपने घर के लिए आदर्श बनाना , संस्कारों पर कायम रहना उन्हें नहीं आता |
एक और महाजन हैं , दोस्त उनकी जिंदगी हैं , रात को जब घर आते हैं , सब लोग सो चुके होते हैं , कभी , कमरे का फर्श उनका बिस्तर होता है ,कभी ,बाथरूम का फर्श | पत्नी कब तक , इस तमाशे को बर्दास्त करती रहे ? एक दिन स्त्री तुनक गई , घर को अस्त -व्यस्त कर दिया , पति महाशय को झकझोर दिया तब उनकी आँखें खुलीं , आखिर कब तक , सहन किया जाये ?
अब , परिवार की कुछ मरियादएं भी तो होती हैं , उनका पालन करना सिर्फ पत्नी का काम है , हमारे समाज में हजारों महाजन हैं , उनकी पत्नियाँ हिंसा का शिकार होतीं हैं , अत्याचार सह्तीं हैं , अपशब्द सुनती हैं | आजाद जिंदगी जीने का सबसे बड़ा खतरा यही है , जो हम सभी के सामने आ गया है | स्त्री , घर भी संभालती है , काम भी करती है , पैसा भी लाती है फिर भी प्रताणित होती रहती है आखिर कब तक , चलेगा यह सब ? कब तक?
रेनू शर्मा ....
4 comments:
जब तक स्त्री इस महाजन को माफ़ करती रहेगी ये चलता ही रहेगा ……………………ये कापुरुष होते हैं बस एक स्त्री मे ही वो दम होता है जो चाहे तो इन्हे इनका आईना दिखा सकती है मगर वो भी ना जाने क्यूं इनकी लुभावनी बातों मे आ जाती है जैसा कि सबको पता था कि ये कैसा इंसान है फिर भी सिर्फ़ नाम के लिये कुछ स्त्रियाँ भी समझौते कर लेती हैं मगर जब बाद मे बर्दाश्त से बाहर हो जाता है तो यही हश्र होता है फिर ऐसे मे अगर पहले ही ये पता हो तो क्यूँ जलती चिता मे हाथ जलाना………………जब तक खुद अपना विश्लेषण नही करेगी इसी आग मे जलती रहेगी नारी।
nice post! naitik aur aavasyak chintan.
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vandana ji aapne sahi kaha!
nice post! naitik aur aavasyak chintan.
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vandana ji aapne sahi kaha!
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