Tuesday, June 29, 2010

गुरु पूर्णिमा पर विशेष


अज्ञानतिमिरान्धस्य  ज्ञानांजनशलाकया  |
चक्षुरुन्मीलितम येन तस्मै श्री गुरुवै नम : || 

अज्ञान रूपी अंधकार की अन्धता को ज्ञान रूपी काजल की शलाका से हमारे नेत्रों को खोलने वाले श्री गुरु को नमन है ,
हमारे देश मैं युगों से गुरु -शिष्य परंपरा परम पूज्य है , यही कारण है कि हम लोग आज भी श्रावण कि पूर्णिमा को श्री गुरु पूर्णिमा के रूप मैं मनाते आ रहे हैं , कहा जाता है  कि देवताओं के गुरु ब्रहस्पति ने इसी दिन सभी देवताओं कि प्रार्थना सुनकर परम ज्ञान दिया था , लेकिन आज हम वैज्ञानिक युग की बात कर रहे हैं , बिना गुरु ज्ञान के कुछ भी संभव नहीं है |
जब , मानव पृथ्वी पर पहली श्वांस लेता है तब , से लेकर अंतिम श्वांस तक माता ही उसकी पहली गुरु होती है , जो उसे प्यार -दुलार के साथ ही रिश्ते , सामाजिकता , नैतिकता , का ज्ञान कराती है , फिर शब्द ज्ञान , आध्यात्मिक ज्ञान , शस्त्र-शास्त्र का ज्ञान देने के लिए किसी गुरु की ही आवश्यकता पड़ती है |सम्पूर्ण पृथिवी पर असंख्य ज्ञान शालाएं है , असंख्य गुरु आचार्य हैं , जो विद्या का ज्ञान देते हैं |पुस्तकें भी हमारे जीवन मैं गुरु का स्थान रखतीं हैं | गुरु के प्रति अगाध श्रद्धा - भक्ति , विश्वास आज भी देखने को मिलता है , कुछ अपवादों को छोड़कर जैसे उज्जैन मैं गुरु को तब ,तक प्रताणित किया गया जब ,तक उनकी जान ही न निकल गई , युवा राजनैतिक शिष्यों की यह गुरु के प्रति आस्था थी , और भी अनेकों उद्धरण मिल जाते हैं जब , गुरु को अपमानित होना पड़ा है अपने ही विद्ध्यार्थियों के कारण |हमारे समाज मैं अच्छाइयों के साथ ही कुछ बुराइयाँ भी हैं जिन्हें राजनेताओं के कारण ढोना पड़ता है |
इन्हीं सब अवसादों से जब , व्यक्ति मुक्ति चाहता है तब , आध्यात्मिक गुरु के पास जाता है , आध्यात्मिक गुरु हमारे आत्मिक ज्ञान का विकास करते हैं , चाहे वे प्रवचन दें , योग कराएँ या हठ योग कराएँ या कठिन प्रायश्चित कराएँ |भारत एक सर्वगुण संपन्न राष्ट्र है ,जहाँ कंदराओं मैं आज भी साधू -संत , ऋषि -मुनि धूनी लगाये विराजते हैं , गहन बर्फीली पहाड़ों की चोटियों पर नंगे बदन समाधी लगाये आज भी तपस्वी मिल जाते हैं , हजारों परम्पराओं का पालन करने वाले सम्प्रदाय आज भी सक्रीय हैं | महान हिन्दू धर्म की ज्योति को प्रकाशित करते रहते हैं |
आध्यात्म के माध्यम से शिष्यों को स्वयं से ही पहचान कराइ जाती है , ईश्वर हमारे भीतर ही है यह गुरु ही दिखा पाते हैं , हमारे आत्मिक पथ को प्रदर्शित करने का काम गुरु ही करते हैं | इस संसार चक्र से कैसे मुक्त हों या माया , मोह , ममता से कैसे मुक्ति मिले वे ही समझा पाते हैं | 
अपवाद तो हर जगह मौजूद हैं , हमें चाहिए कि जाँच -परख कर लें तभी निर्णय लें |
हमारे जीवन मैं गुरु का स्थान किसी कारण से कम नहीं हो सकता | सीखना मनुष्य की प्रकृति है , हर -पल अज्ञान को मिटाने का प्रयास करना ही चाहिए | इसी कामना के साथ गुरु पूर्णिमा पर श्री गुरु की चरण वंदना करते हुए सभी के लिए मंगल कामना करते हैं |
रेनू शर्मा ...

1 comment:

P.N. Subramanian said...

सारगर्भित सामयिक आलेख. सभी गुरुजनों को नमन.