कडकडाती ठण्ड में चाय का प्याला अँगुलियों के बीच थामकर चुस्कियां लेना अभी शुरू ही किया था कि अख़बार पर नज़र टिक गई , मुंह खुला रह गया , सीने से हूक सी उठी , कुछ भीतर ही भीतर बैठ गया सा लगा , दौड़कर माँ के पास गई , माँ !! देखा आपने , भोपाल में गैस लीक हो गई और लोग मर रहे हैं , माँ ने डबडबाई आँखों को मेरे चेहरे पर टिका कर कहा - हाँ , पढ़ लिया है , बेबी को फोन लगा , वे लोग ठीक तो हैं ? बाबा टी .वी . पर आँखें गढ़ाए थे , मोटा लिहाफ ओढ़े थे फिर भी उनका शरीर कांप रहा था , धीरे से बोले - जा बेटा !! एक कप चाय ला दे .
जाने क्यों दुनिया भर में हादसे होते हैं , देख ,पढ़कर मन विचलित होता है लेकिन भोपाल के लिए मेरा कलेजा मुंह को आ गया था , तब आगरा में एम .ए. की पढाई कर रही थी , बार -बार माँ से बोल्रही थी माँ !! मुझे भोपाल जाना है , कहाँ है भोपाल ? कितनी दूर है ? दिन भर सैकड़ों लाशों के ढेर लगते देखती रही , डॉक्टर , सामाजिक कार्यकर्त्ता , रिश्तेदार , नागरिक सब के सब अपना काम कर रहे थे .
रोज भोपाल हादसे की कटिंग लेकर एकत्र कर रही थी , एकांत में अपने ही वजूद के साथ बात करती रहती , आखिर ऐसा क्यों हुआ ? बेचारों पर क्या गुजरी होगी ? इंसानों के साथ ही हजारों पशु -पक्षी भी मिक गैस की गिरफ्त में आकार मिट चुके थे , भोपाल आने की तड़फ सन १९८६ में पूरी हो सकी , आते ही यूनियन कार्बाइड को देखा , वहां की बस्तियों की सिसकियों को महसूस किया , सड़कों पर चलते फिरते अकेलों को देखा , सबके चेहरों पर उस खौफ की चिंदियों को चस्पा देखा , पति डॉक्टर -विमल कुमार शर्मा उस समय डॉक्टर -हीरेश चन्द्र जी के साथ फोरेंसिक एक्सपर्ट के रूप में मिक पर रिसर्च में लगे थे , लैव में दिन -रात काम चलता रहता था , ताकि पता चल सके कि कितनी गैस निकलीं हैं , फिर लोगों को दवाइयां दी जा सकें , उन्हें बचाया जा सके , सभी के प्रयास जारी थे .
सरकारी आंकड़ों के अनुसार ही करीब २५ हजार लोग इस त्रासदी में शहीद हो चुके थे , हजारों लोग आज भी भोपाल के लिए तिल -तिल कुर्बान हो रहे हैं ,सैकड़ों लोग कई पीढ़ियों तक इस दंश को भोगते रहेंगे , आज भी यहाँ की हवा में खरांश है , श्वांस के आवागमन में अवरोध है , पानी में जैसे मिक समां गई है , आँखें जल्दी बूढी हो रहीं हैं , हड्डियाँ चटख रही हैं , उजड़ी सी जिन्दगी जी रहे बुजुर्ग अकेलेपन के शिकार हैं ,
कहने को भोपाल अब , पहले जैसा नहीं रहा , वीरानी को पाटने का काम सरकारी खजाना सड़कों को चमका कर कर रहा है , पर्यावरण को सुधार जा रहा है , पर अस्पतालों की व्यवस्था , साफ़ -सफाई , पानी , बिजली का अभाव अभी भी जारी है ,अब , इस बहस से क्या फायदा कि एंडरसन को किसने भगाया ? या कौन जिम्मेदार है इस हादसे का ? या पकड़ो उन लोगों को , जो, भाग गए , पच्चीस बरस बीत गए ,तब हमारे ही लोगों ने न्याय किया उन हजारों मृत लोगों के प्रति अन्याय कर दिया , यह सब मसाला तो , राजनैतिक पार्टियों की उछल -कूद के लिए है , बात तो ,यह है जो , इस दुनियां से चले गए वे तो , अब लौट नहीं सकते , जो बच गए हैं उन्हें बचाया जा सकता है , उनके आंसू रिसने से रोके जा सकते हैं , उन्हें सहारा दिया जा सकता है ,
मानवीय त्रासदी की इस बेइंतहा पीड़ादायक स्मरण पर हजारों आत्माओं के उत्थान की प्रार्थना के साथ कोटिश : नमन \
रेनू शर्मा ...
3 comments:
fully admitted
तब हमारे ही लोगों ने न्याय किया उन हजारों मृत लोगों के प्रति अन्याय कर दिया
सच है! अपने-पराये से ऊपर उठे बिना न्याय के बारे में कैसे सोच पायेंगे?
बिलकुल सही आंकलन है.
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