अब , हम बात कर रहें कि विवाह पूर्व हमारे समाज में लड़के लड़कियों को एक साथ रहना चाहिए या नहीं ? वैसे जिन जिम्मेदार व्यक्तियों को चर्चा करनी चाहिए , वह तो , करते ही रहेंगे , उससे कोई फर्क पड़ने वाला भी नहीं है , क्योंकि कुछ दिनों पूर्व गर्मागरम बहस छिड़ी थी कि समलैंगिक लोगों को विवाह नहीं करना चाहिए और उन्हे सरकार द्वारा मान्य भी नहीं करना चाहिए , कुछ लोग जमकर विरोध भी कर रहे थे , अभी तक , कर रहे हैं लेकिन सरकार ने उन्हें समाज के साथ जोड़ लिया , सरकार को क्या फर्क पड़ता है कि युवा लोग साथ रहते हैं या अलग रह रहे हैं , बस शांति रहनी चाहिए और अच्छा ही है इसी बहाने जनसँख्या पर थोडा नियंत्रण भी रहेगा ,
कहने का आशय है कि जब उस समस्या का हल सकारात्मक रहा तो इस बात से सरकार को कोई पीड़ा नहीं हो सकती कि युवा वर्ग विवाह पूर्व साथ रहें या नहीं , सामाजिक मान्यता न मिलने पर भी शारीरिक सीमाओं का उल्लंघन करें |
जब , हम विकास कि सीढियां चढ़ रहे थे , तब , हमारे समाज में युवा लड़के लड़कियों को जो विवाह योग्य है , एक साथ रहने का फरमान जारी कर दिया जाता था , पूर्णत : संतुष्ट होने पर ही विवाह संपन्न होता था |आज भी इस नियम को मानाने वाले दल, आदिवासी लोग , इस पृथिवी पर मौजूद हैं , सदियों से युवा इस नियम का पालन कर रहे हैं लेकिन स्वतंत्रता का फायदा जवानी उठा ले जाती है |
हमारी सांसारिक , शारीरिक जरूरतें कुछ ऐसी हैं कि किसी प्रकार का बंधन माय नहीं कर सकतीं |विवाह पूर्व जो बच्चे साथ रहने का फैसला लेते हैं उनके संस्कार , घर -परिवार का वातावरण ही जिम्मेदार होता है | वे नहीं सोचते हैं कि ठीक कर रहे हैं या नहीं ? भारतीय युवा वर्ग अपने शरीर की पवित्रिता की कीमत नहीं समझ पाया है | उन्हें समझना चाहिए कि हमारा शरीर कोई ऐसी वस्तु नहीं है जिसे हर किसी को समर्पित किया जा सके , स्वयं का सम्मान करना सीखें |
साथ -साथ तो रहते हैं लेकिन किसी बात पर झगडा होने पर सब कुछ , ख़तम हो जाता है | माता -पिता सोचते हैं कि बच्चा अपने पाँव पर खड़ा है , नौकरी कर रहा है सही निर्णय ही लेगा लेकिन होता उल्टा ही है | रिश्तों की गंभीरता , सहनशीलता और मर्यादा तो होती ही नहीं है , बस , पाश्चात्य सभ्यता का अन्धानुकरण करने से मतलब होता है , शराब पीना , देर रात पार्टियों में जाना , हर दोस्त के साथ अंतरंगता से पेश आना , यही कुछ ऐसे कारण हैं जो , रिश्तों की डोर को पतला करते जाते हैं , फिर साथ रहना और सोना एक खेल बनकर रह जाता है |
समाज के प्रबुद्ध जन बराबर बहस कर रहे हैं , समाज को दूषित करने की योजना चल रही है , युवा लोग यौन रोगों से ग्रस्त हो रहे हैं , मानसिक , शारीरिक विक्रति का शिकार हो रहे हैं , उनकी शारीरिक पवित्रता भी नष्ट हो रही है , समाज का पतन हो रहा है |यह तो , एक तरह से वैश्यावृति को पारिवारिक और सामाजिक मान्यता देने जैसा हुआ | कोई भी निर्णय लेने से पहले एक बार सोचना चाहिए | आने वाली पीढ़ियों पर क्या असर होगा यह भी समझना चाहिए |
युवाओं को मुफ्त का सुझाव है कि कृपया आंतरिक उर्जा की पवित्रता को बनाये रखने के लिए अनवांछित शयन से बचो |
रेनू शर्मा ....
3 comments:
हमें तो यह समझ में नहीं आता कि जो लोग अपनी मां,बहन वेटी के वारे में जो बात सुनना तक पसंद नहीं करते वही लोग किस मुंह से दूसरों की मां-बहन-बेटी के वारे में.....
सलाह गौर करने लायक है।
यह मुफ्त सुझाव है लेकिन ज़रूरी है ।
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