Tuesday, February 23, 2010

राजनीति के तरकश से , शब्दों के तीखे बाण

कहा जाता है , जब व्यक्ति शिक्षित और साक्षर हो जाता है तब , सोचने समझने की क्षमता बढ़ जाती है . अज्ञानता का अंधकार मिट जाता है लेकिन कुछ भारतीय नेताओं को देखकर तो ऐसा नहीं लगता बल्कि उनका विवेक पतन की ओर जाता दीख पड़ता है . ऐसा लगता है , पढ़ा -लिखा व्यक्ति जादा सोच -विचार कर बोलता है . पहले से समझ जाता है कि इस बात का असर कहाँ तक होगा . 
बात मराठियों की हो ,या बिहारियों की उनके आकाओं को मतों का गणित ही मरे डाल रहा है , सामान्य लोगों को इस बात से कोई सरोकार नहीं कि वे कहाँ रहकर रोजी कम रहे है , कहाँ सो कर रात गुजार रहे हैं .उसके लिए यदि परदेश भी है तो,वहां भी एक घर बनाने की सोचने लगता है . 
लाखों भारतीय दुनियां भर में अपना घर , व्यापार , नौकरी देख रहे हैं , क्या वे , कभी भी वहां से खदेड़े जा सकते हैं ? ऐसा नहीं है , लेकिन यह आग धीरे -धीरे हर जगह फ़ैल रही है , कभी ऑस्ट्रेलिया से खबर आती है कि वहां , किसी स्टुडेंट पर हमला किया गया है , कभी अमेरिका से खबर आजाती है , कभी हम अपने ही देश की गलियों से दरवाजे खिड़कियाँ बंद होने की आहट सुनते हैं हमारे देश में हर राज्य का मंत्री स्वयं को राजा समझता है , आम जनता को प्रजा का दर्जा देते हुए हुक्म चलाना शुरू कर देता है , वे यह भूल जाते हैं कि हम आजाद देश में जी रहे हैं , यहाँ सभी को जीने का हक है , वह जहाँ चाहे रहे , जहाँ चाहे खाए और कमाए .
भारत खंडित होता जा रहा है , कुछ लोग हैं जो इसके तुकडे कर देना चाहते हैं जो पडौसी राज्य से भी खतरनाक हैं . वे अपने ही लोगों के दुश्मन बन रहे हैं , कोई भी सरकार उनके तीखे शब्द बाणों पर किसी प्रकार की प्रतिक्रिया नहीं करती , साधारण जनता भी समझती है कि यह सब वोट का फंडा है लेकिन क्या यह सब शोभा देता है ?अतिथि देबो भव का नारा देने वाला भारत अतिथि आतंकियों को भी अटूट सुरक्षा घेरे में पालता है , अपने देश में भिखारियों की संख्या हर दिन बढती जा रही है , उसकी चिंता किसी को नहीं . महगाई मुंह का निवाला छीन रही है , राजनेता शब्दों के बाण छोड़कर युध्य कर रहे हैं , 
कोई दलित के घर खाना खाता है , कोई रात गुजारता है लेकिन वे यह नहीं देखते कि बाजार से अनाज गायब है , दूध के लिए बच्चे तरस रहे हैं , आखिर लोगों को कब तक बेवकूफ बनाया जा सकता है , यही हाल रहा तो , तख्ता पलट शीघ्र ही हो सकता है , पत्थरों की मीनारें , मूर्तियाँ , बाग़ -बगीचे बनवाने में करोंड़ों खर्च हो जाते हैं लेकिन क्या उन्हें पता है कि उनके राज्य में कितने लोग भूखे सो रहे हैं ?
ज्ञानी लोगों की इस तीखी नोक -झोंक का क्या ह्क्ष्र होगा ? नहीं पता , लेकिन हम चाहते हैं कि देश के साथ खिलवाड़ न करें .
रेनू शर्मा .... . 

1 comment:

Amitraghat said...

"ईमानदारी,नैतिकता आजकल खत्म-सी हो गई है पर फिर भी यह देश रहने के हिसाब से दुनिया की बेहतरीन जगहों में से एक है..आपका लेख अच्छा और सारगर्भित है...
।"
प्रणव सक्सैना amitraghat.blogspot.com