अपराध हमारे समाज से सत्व की तरह ही जुड़ा है , इसे मिटाया नहीं जा सकता , लेकिन कम अवश्य किया जा सकता है . हजारों बरस पहले विद्वान लेखकों ने राम चरित मानस में लिखाकर अमर कर दिया कि- ढोर ,गंवार , शूद्र [ गरीब ] और नारी सकल ताड़ना के अधिकारी . उस समय के हिसाब से शायद सब ठीक होगा पर आज कंप्यूटर युग में यह सब शोभा नहीं देता .
हमारे समाज में चाहे , मानव हो , पशु -पक्षी हो , प्रक्रति हो किसी के भी साथ अच्छा व्यवहार नहीं होता है . आज भी ढोरों को उसी तरह प्रताणित किया जाता है जैसे इन्सान को , जिन्दा जानवर को इन्सान के सामने पकाया जाता है ,तो जानवर के साथ इन्सान को बांध भी दिया जाता है .
हम कितने ही शिक्षित या ज्ञानी क्यों न हो जाएँ , सत्यता यही है कि आज भी पृथ्वी पर करोड़ों लोग अशिक्षित और अज्ञानी हैं , वे लोग गंवार ही हैं जो पढ़ -लिख नहीं पा रहे हैं . कानूनन भी एक नासमझ व्यक्ति अपराधी माना जाने लगा है , क्योंकि हमारी जेलों में हजारों ऐसे इन्सान कैद हैं जिन्हें पाता ही नहीं किस जुर्म की सजा भोग रहे हैं . उनके गंवारपन की सजा कानून को भी देनी पड़ी है .
गरीबी तो एक अभिशाप है ही , किसी भी अपराध के पीछे गरीबी को मुख्य मुद्दा माना जाता है , संसार में सिद्ध कर दिया गया है की -चोरी तो , गरीब ने की होगी , लूट -तो गरीब ने की होगी , हत्या तो ,गरीब ने की होगी . जबकि सत्य तो यह है कि निर्धनता कभी चोरी करने को बाध्य नहीं करती , व्यक्ति के भी तर का विश्वास ही कमजोर होकर उसे किसी भी कृत्य के लिए उकसाता है . घरों में काम करने वाले लोग इस भरम के अधिक शिकार होते हैं .
दुनियां की नज़र में भारत भी एक गरीब देश है लेकिन यहाँ के नेता , मंत्री , राजनैतिज्ञ करोड़ों रुपयों के लेन देन में फंसे रहते हैं , अदना सा कर्मचारी भी अकूत धन -धान्य से सम्पन्न पाया जाता है . एक समय की रोटी के लिए हाथ फैलाये गरीब झोंपड़ी में ही रात ही नहीं , पूरा जीवन बिता देता है . हमारे राजनेता भी गरीब की कुटिया पर जाकर यह दिखने का प्रयास करते हैं कि हम , सब एक हैं लेकिन उनका ईश्वर ही जनता है वे लोग कितने पास कितने दूर होते हैं .
अब नारी की बारी आती है , इसे प्रताणित करने का सिलसिला कोई नया नहीं है , सदियों से यह काम चल रहा है , कभी पुलिस अधिकारी बन रुचिका को प्रताणित करता है , बरसों तक खुला बैल सा घूमकर दुनियां को बता देता है कि में भारतीय पुरुष हूँ , और कभी , आरुशी जैसी लड़की का क़त्ल कर बता देता है कि में ही हूँ , औरत को प्रताणित करने वाला . नारी अपनी लाज की लाज बचाने के लिए हजारों साक्ष्य की कसौटी से गुजरती है , हमारा कानून बरसों तक गवाह खोजने की बात करता रहता है ,
अब , बात होती है एक और नारी वसुंधरा बुंदेला की , जो सरे राह मृत पाई जाती है , अपराधी अपने छिपाने के रास्ते को साफ़ -सुथरा करता रहता है , वैभवशाली लोग अपराध करते हैं और नारी को अपमानित होना पड़ता है . कानून अँधा सा होकर धाराओं में बह जाता है . किसी आतंकी को पकड़ लिया तो , उसे सहेजकर रखते हैं , करोड़ों रुपये उस पर बर्वाद कर देते हैं , किसी गरीब को खाना देते तो अच्छा था . अब , सरकार को कोई सलाह -मशविरा देना तो , गुनाह ही होगा , लेकिन एक बात तो सच है कि पुरानी कहावतें फिर से अभिनीत की जा रहीं हैं . जाने कब , हम लोग समझ पाएंगे कि हम इन्सान हैं , बस .
18 comments:
सरासर बकवास और बेतुक बात की है आपने , हाँ जहाँ तक पुलिस की बात है तो उसमे सच्चाई हो सकती है । और आपने जो कुछ भी कहा है उससे पूर्णतया सहमत नहीं हूँ , अभी थोड़ा जल्दी में हूँ , आकर आपको तर्क भी दूंगा , ।
ek bahut hi gambheer aur sarthak lekh likha hai.........shayad koi ise padhkar jaage.
राम चरित मानस में इसे किस सन्दर्भ में लिखा गया था ये तो मालूम नहीं,पर अभी भी इसकी पालना बखूबी हो रही है...
सबसे पहले शुरु करता हूँ आपके " ढोर ,गंवार , शूद्र [ गरीब ] और नारी सकल ताड़ना के अधिकारी " इसके पक्ष में आपने जितनी भी दलीले दी हैं वह शरासर गलत है , आप ने यहाँ ताड़ना को प्रताड़ीत की सज्ञां दी है , जो की सही नहीं जहाँ तक मुझे मालुम है , आइये देखते हैं कैसे ------
ताड़ना शब्द के विवाद को लेकर , तो जो अर्थ आप बताना चाहती है यहाँ ताड़ना शब्द का वह कतई सत्य नहीं माना जा सकता ," ‘‘ढोल गँवार सूद्र पसु नारी/सकल ताड़ना के अधिकारी।।’’ यही वह चौपाई जिसे आप बताना चाहती हैं शायद , ।
कहा जाता है कि नारी को ताड़ना का अधिकारी बता कर गोस्वामी जी ने समस्त नारी जाति का अपमान किया है। ऐसी शंका और विवाद चौपाई के अर्थ का अनर्थ करने तथा उसके निहितार्थ को सही परिप्रेक्ष्य में न समझ पाने के कारण पैदा हुआ है।वास्तव में इस चौपाई द्वारा ताड़ना के अधिकारी पाँच नहीं केवल तीन ही बताए गए हैं -
1. ‘ढोल’ जिसका प्रयोग डंडे की चोट द्वारा ही संभव है।
2. ‘गँवार सूद्र’ का तात्पर्य तत्कालीन समाज में उस सेवक से है जो गँवार (मूर्ख व हठी) हो तथा जिसके व्यवहार से मालिक का नुकसान हो रहा हो।
3. ‘पसु नारी’ अर्थात् पशुवत् आचरण करने वाली स्त्री जो मर्यादा का उल्लंघन करे तथा विवेक को ताक पर रख कर परिवार में अशांति व कुंठाएं पैदा करे।
प्रस्तुत चौपाई के द्वारा ये तीन ही ताड़ना के अधिकारी बताए गए हैं। शेष दो शब्द ‘गँवार’ और ‘पसु’ का प्रयोग चौपाई में शूद्र और नारी के विशेषण के रूप में किया गया है।
यहाँ ‘ताड़ना’ शब्द पर भी ध्यान देना होगा। शब्द -कोश में ताड़ना का अर्थ मारना- पीटना ही नहीं ‘डाँटना-डपटना’ भी है। अस्तु ‘गँवार-सूद्र’ या ‘पसु-नारी’ को डाँट-डपट कर सुधारने का सुझाव देकर तुलसीदास जी ने कोई अन्याय नहीं किया।
विस्तृत परिप्रेक्ष्य में विचार करने पर स्पष्ट हो जाता है कि गोस्वामी जी ने नारी को सदैव आदर व सम्मान ही दिया है।
यथा ‘‘अनुज-वधू भगिनी सुत-नारी। सुनु सठ कन्या सम ये चारी।।’
इसी प्रकार हनुमान जी को सागर बीच जब सुरसा उदरस्थ करने पर अड़ गई, तब भी उसे माता कहकर ही संबोधित किया गया है यथा -
तब तव वदन पैठिहउँ आई। सत्य कहउँ मोहि जान दे माई।
श्रीराम और शबरी के प्रसंग में शूद्र और नारी दोनों के प्रति जिस ममता, प्रेम व सम्मान का वर्णन है उससे स्पष्ट हो जाता है कि रचनाकार पर नारी या शूद्र को अपमानित करने का आरोप निराधार और अन्यायपूर्ण है।
ताड़ना शब्द का ऐसा ही एक उदाहरण है जो कि यहा प्रयोग में लाया गया ताड़ना शब्द के समान ही लगता है
" लालयेत् पञ्चवर्षाणि दशवर्षाणि ताडयेत् ।
प्राप्ते तु षोडशे वर्षे पु्त्रे मित्रत्वमाचरेत् "।।
अर्थात पाँच वर्ष तक दुलार करें पुत्र का , और दस वर्षतक ताड़ना दें यानी उसे नियन्त्रणं में रखे - उच्छृख्डंल ना
सादर वन्दे
आपकी पोस्ट का मै विरोध नहीं कर रहा हूँ किन्तु आप के द्वारा रामचरित मानस में दी गयी चौपाई का सही अर्थ बताने कि चेष्टा कर रहा हूँ आप इसे अन्यथा मत लें क्योंकि अर्थ कि दृष्टि से यही सत्य है,वैसे दूबे जी ने अपनी तरफ से समझाने का प्रयास किया किया है किन्तु वह भी सही अर्थ नहीं लिख पाए हैं,
अर्थ कि दृष्टि से ताड़ना का अर्थ होता है पहचाना, मारना या पीटना, देखना इत्यादि, अगर आपने रामचरित मानस पढ़ा हो तो उसमे इस ताड़ना को पहचानने के अर्थ में प्रयोग किया गया है,
इसके अर्थ को समझाते हुए तुलसीदास का आशय है कि ये पाचों, ढोल, गवार, शुद्र, पशु व नारी, जबतक इनके स्वभाव को आप नहीं पहचान लेते तबतक इनके साथ जीवन यापन नहीं हो सकता, इसकी व्याख्या और भी लम्बी है, लेकिन मुझे लगता है कि आप इसे समझ गयी होंगी,
रही बात आलोचना कि तो हम पढेलिखे लोग है हमें बिना खोज के और सत्यता परखे दूसरों कि सुनकर अपना विचार नहीं देना चाहिए, तुलसीदास यैसे रचनाकार नहीं हैं जिनको इतनी आसानी से समझा जा सके अतः प्रथम प्रयास उस साधना कि होनी चाहिए जिसको करके इन महात्माओं ने येसी रचनाएँ कि. बाकी आप कि पोस्ट विचारनीय है,
किसी अभद्रता के लिए क्षमा
रत्नेश त्रिपाठी
पढ़ लिया आलेख भी और सार्थक टिप्पणियाँ भी, आभार. अब कुछ कहने को नहीं है.
mithilesh जी से सहमत..!
तुलसी बाबा जो लिख गए हैं वह हजारों वर्ष के प्रेक्षण का प्रतिफलन है -व्यासीय व्याख्याएं अक्सर अर्थ का अनर्थ कर डालती हैं ! मानस को सही परिप्रेक्ष्य और सटीक संदर्भ में देखा जाना चाहिए !
वैसे शब्द कोष में ताडना का एक अर्थ 'भली भांति समझने का प्रयास करना' भी होता है .. मैं उसके व्यवहार को ताड रहा था !!
bhai sahab urf blagiye sajjan aap ke font itane chote hain ki coments kya doon pahale ankhon ka chek up karana hoga
bhai sahab urf blagiye sajjan aap ke font itane chote hain ki coments kya doon pahale ankhon ka chek up karana hoga
मै ताड नही पाया आप कहना क्या चाहती है
renu ji
vistrit charcha to mein nhi janti sirf itna kah sakti hun aaj manushy jitna viaks ke path par aage badh raha hai uskisoch utni hi sankuchit hoti ja rahi hai aur apradh ki graph bhi usi tarah badhta ja raha hai ........insaan itna soch hi nhi pa raha ki kya gala thai aur kya sahi aur ek andhi daud mein sirf daudta hi ja raha hai..........sochne ki baat hai ki kya desh ko is waqt common wealth games karwane chahiye jabki usi vajah se mangayi din dooni badh rahi hai , ek garib to bechara 2 waqt ki roti ka jugad nhi kar pa raha to use isse kya fark pad jayega ki desh ne kitni tarakki ki ya duniya main desh ka kitna naam hua ,,,,,,,wo to kal bhi garib tha aur aaj bhi hai aur kal bhi rahega..........sarkar se is tarah ke kisi kadam ki aap koi ummeed nhi karein.......aaj ki shiksha kya de rahi hai sirf andhi daud mein daudna.varna aaj ye , samaj aur uski soch ka ye haal na hota.
बहुत सुन्दर रचना
बहुत बहुत बधाई .....
ढोल, गवार शुद्र, पशु नारी, सकल ताड़ना के अधिकारी!!
लोगों ने ताड़ने मतलब ही गलत कर दिया है। ताड़ने का मतलब प्रताड़ना नहीं बल्कि ध्यान देना होता है। गावों में आप अक्सर सुन सकते हैं ये शब्द , कोई किसी को ध्यान से देखता है तो वो उसको यही कहते हैं की क्या ताड रहे हो।
तो यहाँ मतलब यही है की इन सभी का बहुत ध्यान देना चाहिए।
#amitks
वस्तुतः यह शब्द "ताड़ना" है "प्रताड़ना" नहीं। रामचरितमानस खड़ी बोली में लिखी गयी है।
पूर्ण दोहा इस प्रकार है-
प्रभु भल कीन्ह मोहि सिख दीन्हीं। मरजादा पुनि तुम्हरी कीन्हीं॥
ढोर गवाँर सूद्र पसु नारी। सकल ताड़ना के अधिकारी॥3॥
भावार्थ:-प्रभु ने अच्छा किया जो मुझे शिक्षा दी, किंतु मर्यादा (जीवों का स्वभाव) भी आपकी ही बनाई हुई है। ढोल, गँवार, शूद्र, पशु और स्त्री- ये सब ताड़ना के अधिकारी हैं॥3॥
सन्दर्भ देखने से स्पष्ट है की यहाँ बात शिक्षा/देखरेख की हो रही है, न कि प्रताड़ना की।
तथाकथित बुद्धिजीवी इसे जाति पर अत्याचार बता रहे है, जिसके बारे में यह दोहा रामचरितमानस से, स्थिति स्पष्ट करता है-
हरिजन जानि प्रीति अति गाढ़ी। सजल नयन पुलकावलि बाढ़ी।।
यह जानकार की श्रीराम के ह्रदय में हरिजन के लिए कितना गाढ़ा स्नेह/प्रीती है, हनुमानजी के नयन जल से भर गए तथा मन और भी पुलकित हो गया।
अतः स्पष्ट है की रामचरितमानस जातिवाद का तो समर्थन नहीं करती।
बिल्कुल सही
बिल्कुल सही
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