Tuesday, November 10, 2009

भाषाई तमाशा

कहा जाता है कि जब विपत्ति आती है ,तब , बुद्धि , विवेक , सब किनारा कर जाते हैं . व्यक्ति बिना सोचे - समझे कार्य करता है . यही बात महाराष्ट्र की राजनीति में देखने को मिल रही है . बाप -दादों की बरसों की मेहनत को पानी में बहा दिया है , उनके मुंह पर कालिख पोतने का काम क्या जा रहा है . 
लम्बे अरसे से हमारे देश में , भाषाई नाटक हो रहे हैं . जहाँ चले जाओ , वहां की लोक भाषा ही अधिक प्रचलन में है . शहर का नाम हो , रास्तों के निशान हों , दुकानों के नाम हों , सब राज्य भाषा में लिखे ही मिलते हैं . कलकत्ता , केरल ,आंध्रा , चेन्नई या गुजरात कहीं भी जाओ , वही तमाशा जारी है .
संसद  में सांसद लात -ढूंसों की बौछार कर रहे हैं , पूरी दुनिया तमाशा देख रही है , घर के लोग ही आपस में सर फोड़ रहे हैं . जो लोग राज्य भाषा की बात करते हैं , उन्हें यह भी पता होगा कि हिन्दी फिल्में ही पूरे विश्व में दिखाई जा रही हैं . माना कि , राज्य भाषा भी अहम् भूमिका निभाती हैं , लेकिन झगडा करने का मतलब क्या है ? 
एक देश के भीतर ही अनेक देश बनाने की मुहीम शुरू हो रही है . छोटे राजाओं के राज्यों की तरह ही , प्रयास किये जा रहे हैं . क्या , हमारे देश में कोई ऐसा व्यक्ति नहीं ,जो इन खुरापातियों को दंड दे सके ? बच्चे सब तमाशा देख रहे हैं , एक दिन वे भी ,यही कदम उठा सकते हैं , तब आप क्या करोगे ? भारतीय सभ्यता , संस्कृति की सरेआम धज्जियाँ उदै जा रहीं हैं . साधारण इन्सान यदि इस तरह की हिमाकत कर देता , तो शूली पर चढा दिया जाता , लेकिन जबर की कोई नहीं सुनाता . 
हद ही हो गई , देश के भीतर ही देश को खोखला क्या जा रहा है , किसी दुश्मन की जरूरत ही नहीं रही . अब , बारह बरस तक बच्चे हर भाषा का ज्ञान पाने में निकल दें , तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए . आखिर कब तक यह तमाशा चलता रहेगा ?
रेनू ...

3 comments:

मनोज कुमार said...

यह तमाशा अब बंद होना चाहिए। काफी अच्छा लेख।

Udan Tashtari said...

शर्मनाक!!

श्यामल सुमन said...

लगता है पूरा प्रशासन कुछ गुंडा तत्व के सामने बौना हो गया है। दुखद है।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com