Thursday, October 8, 2009

चौथ का चाँद


सदियों से सुनते आ रहे हैं कि चाँद हमारे धर्म ग्रन्थों, की कथा सरिता में , जड़े गए बहुमूल्य रत्न की तरह चमकता एक तारा तो , है ही , साथ ही हमारे पृथ्वी ग्रह के मानवों और जीव -जंतुओं के लिए दैनिक जरूरतों का खजाना भी है । जब रात अपने चरम पर होती है ,तब जीव चाँद की रौशनी में अपना भोजन तलाशते हैं , कोई मदमस्त हो अपनी प्रिया को खोजता फिरता है । ऐसा चाँद , जो हमारी परम्पराओं का चाँद , हमारे संबंधों का चाँद , हमारी संस्कृति का चाँद , हमारे प्यार का चाँद , हमारे इजहार का चाँद , हमारे रूप का चाँद , हमारे वियोग का चाँद , हमारे योग का चाँद , हमारे ज्ञान का चाँद और हमारे विज्ञान का चाँद है

अब , जब हम वैज्ञानिक युग में जी रहे हैं , तब चाँद की रसिकता कुछ मध्यम पड़ती जा रही है । तनहाइयों में चाँद को निहारना अब , ईद के चाँद सा होता जा रहा है , बेकरारी में चाँद को देखना अब , भाता नही है । एक नियम -संयम बन गया हमारा चौथ का चाँद साल में एक बार हर मानव को आकाश की तरफ़ मुंह करके चाँद को खोजने को मजबूर करता है ।

चौथ का चाँद किसी से नही कहता , मुझे तलाशो , हमारे निराहार व्रत की यह शर्त है कि चाँद को अर्ध्य दो , फ़िर व्रत खोलो । चाँद हमारे सुहाग , सौभाग्य की वृद्धि करेगा , आशीर्वाद देगा , शान्ति देगा , संतुष्टि देगा और शायद शीतलता भी देगा ।

पृथ्वी ग्रह की हर नारी चाहती है कि उसके पति के जीवन मार्ग की अदृश्य बाधाओं को चाँद अपनी ज्योत्सना से सिंचित कर , तेज में बदल दे । करोड़ों देवी -देवताओं के देश में चाँद हजारों रूपों में आराध्य हैं । मानवीय विकास क्रम में चाँद कभी , चंदामामा बनाकर आता है , कभी कहानी सुनाकर मीठी नींद सुलाता है , कभी , शिकायतों का पुलिंदा खोलते प्रेमी को दूर से ही , आँखें दिखाता है , कभी दीवाने को चाँद में ही अपनी प्रेमिका दिखाई देने लगती है , एकाकी युवामन चाँद से भी शर्माता है , कभी , चाँद के धब्बों को आंसुओं का भंडार बताकर अपने विरह को उद्दीप्त करता है ।

प्यार की गहराई को प्रमाणित करने के लिए , यूँ ही , चाँद की ऊँचाइयों को छूना चाहते हैं , हमारी चाहतों का काल्पनिक लोक अब , आकार लेने लगा है । चाँद हमारे विचारों , भावनाओं , संवेदनाओं से जुडा हुआ है , इसलिए अब ,हम भी , विज्ञानं पर भरोसा कर सोचने लगते हैं , क्या होगा ? जब , हम सच में चाँद पर होंगे । प्रेमिका के आंसुओं को छलकाने का काम वैज्ञानिक अब , करने जा रहे हैं । रॉकेट से चाँद की सतह पर चोट पहुंचाई जायेगी , कई किलोमीटर मिटटी उड़ जायेगी , हमारा चाँद मानवीय आघात को जाने सहन कर भी पायेगा , या नही ? हम चाँद की रूह से जुड़े हैं , ऐसा लगता है मानो , हमारी आत्मा पर कोई चोट करने जा रहा है , क्या करें ? कैसे पता चलेगा , वहां अश्रु प्रवाह होगा या निर्जलता व्याप्त है ? इंतजार है हमसफ़र के जवाब का ।

रेनू ....

4 comments:

शरद कोकास said...

किसी निर्जन स्थान पर खड़े होकर चान्द को निहारिये यह सुकून देता है ।

Udan Tashtari said...

इस पार से ही निहारिये...उस पार न जाने क्या होगा...

दिगम्बर नासवा said...

जहां भावनाओं का समंदर हो वहा किसी भी सच को जान कर क्या होगा ........... समुन्दर को दुनिया ने नाप लिया पर भावनाएं क्या ख़त्म हुईं .............गहरे अर्थ लिए मन की पीडा को लिखा है आपने ..........

हरकीरत ' हीर' said...

हमारा चाँद मानवीय आघात को जाने सहन कर भी पायेगा , या नही ? हम चाँद की रूह से जुड़े हैं , ऐसा लगता है मानो , हमारी आत्मा पर कोई चोट करने जा रहा है , क्या करें ? कैसे पता चलेगा , वहां अश्रु प्रवाह होगा या निर्जलता व्याप्त है ?

पता नहीं हम अश्रु प्रवाह या निर्जलता भी देख पाएं या नहीं .....कहा तो यह भी जा रहा है क़यामत का दिन नजदीक आता जा रहा है .....!!