विभाजन की बात चलती है तब , हम भारत-पाक के बीच की कडूआहट , तकरार , मतभेद , आरोप -प्रत्यारोप , नीति -कूटनीति ,धोखा -फरेव और न जाने क्या -क्या लांछन लगाकर चर्चा करने लगते हैं । हमारे बुजुर्ग बीसवीं सदी की इस बर्बरतापूर्ण विरासत के बंटवारे को महाकाव्य के रूप में हमारे सामने परोसते हैं . इस पीडादायक घटना का जिक्र हम फिल्मों में भी देख चुके हैं किस तरह देश के नेताओं , मंत्रियों ने फायलें साइन कीं , एक तूफ़ान उठा और सैलाव आ गया ।
दौनों मुल्कों के लोग अपनी घबराहट को थामने के प्रयास में जार -जार रो रहे थे , जीवन भर का संग्रह , संतान , अपने - पराये , मान - सम्मान , सब कुछ पीछे छोड़कर , जीते जी खाली हाथ उस तथाकथित अपने वतन को लौट रहे थे , जो असल में किसी का है ही नहीं ।
एक कारवां जा रहा है , तो दूसरा लौटने की जुगत कर रहा है , इस तरह आवागमन की वीथियाँ शोक , संताप और भय के पहरेदारों से भर गईं थीं । दरों पर लूट मारकाट , प्रतिशोध का आतंक छ गया था , कितने लोग घोर यातना का सामना कर इस दर्दनाक फैसले को धिक्कार रहे थे , सब कुछ तबाह हो गया , राजाओं के एक फैसले से नगर ही उजड़ गए । औरतों युवतियों , बच्चियों की पीड़ा तो सदियों के लिए कथाओं में समाहित हो चुकीं हैं ।
विभाजन शब्द कहने में जीतनी एक रसता का आभास देता है , उतना है नही , आज भी प्रांतीय विभाजन की कसक को महसूस किया जा सकता है । दिलों की दूरी यूँ तो , मिट रही है , लेकिन कुनैन के घूँट सी अभी तिक्तता दे ही रही है । इस विभाजन की बात इस लिए हो रही है क्योंकि इस घटना को तो पूरी दुनिया ने देखा , सुना, भोगा , जीया है क्या कभी , कोई उस विभाजन का अनुमान लगा सकता है जो घरों की चाहरदीवारी के भीतर पति -पत्नी के बीच , परिवारों के बीच होता है । संस्कृति और संसकारों का हवाला देकर परिवार पनपने लगता है , अचानक एक दिन विस्फोट सा होता है , पति -पत्नी एक साथ रहना नही चाहते , एक दूसरे की आदतें , व्यवहार , कही बातें सब चुभने लगती हैं , संतान का मुंह देखकर सालों तक , माता -पिता जिंदगी को ढोते हैं ।
पुरूष के पास थोथे सहारे होते हैं , कभी शराब पीटा है , कभी वैश्यावृत्ति कर लेता है , कभी इश्कबाजी कर लेता है , महिला घर के कामों में ख़ुद को उलझाती रहती है । दिन भर तार -तार होकर, रात भर छलनी होती रहती है । नाजुक रिश्ता कोढ़ सा रिसने लगता है । कोई ऐसी जगह नही , जहाँ औरत अपनी पीड़ा , दर्द , व्यथा को दर्ज करा सके । यूँ तो , रिश्तों की लिस्ट छोटी नही होती पर , तमाशा देखने वालों की भीड़ रहती है ।
दिलों का विभाजन भी राष्ट्रीय विभाजन के दर्द से कम नही होता , किसी भी परिवार का टूटना , बिखरना कितना कष्टदाई होता होगा हम समझ सकते हैं । कोई अन्तरंग रिश्ता जब, विभाजन की पीड़ा को झेलता है तब , उसकी टूटन , खिचन ,अलग होते अहसास की चुभन को सहन करना आसान नही होता । झट से अलग होने वाली बात नही है ।
हमारे समाज की स्त्रियाँ तो बार -बार विभाजित होती रहतीं हैं । पिता का घर , पति का घर एक के बाद एक विभाजन । इन रिश्तों की गर्मी , ठंडक और सिहरन को सिर्फ़ एक औरत ही समझ सकती है । जीवन भर छोटे -छोटे रिश्तों में चरमराती औरत अपना वजूद ही खो देती है । बच्चों , घर , परिवार , सम्बन्धियों में बंटती स्त्री जनम से मरण तक विभाजित ही होती रहती है । जीती जागती आध्यात्मिक यज्ञ की देवी सी नश्वरता का पाठ पद्धति है , वहीं पुरूष स्थाइत्व की तलाश में नींव खोदता रहता है ।
हमें रहीम की इन पंक्तियों को आत्मसात कर लेना चाहिए -
रहिमन धागा प्रेम का
मत तोड़ो चटकाय ।
टूटे से फ़िर न जुड़े
जुड़े गाँठ पड़ जाय । ।
रेनू ....
7 comments:
आपने व्यापक संदर्भों को रेखांकित किया है.
bahut hi dukhpurn atit tha vibhajan ka wah samay..
aapne un baaton aur bhavnaon par prakash dala ..dhanywaad..
swtantrtata diwas ki badhayi..
jai bharat..
कोई उस विभाजन का अनुमान लगा सकता है जो घरों की चाहरदीवारी के भीतर पति -पत्नी के बीच , परिवारों के बीच होता है ।
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विभाजन हर स्तर पर खंडित करती है. आपका आलेख बेहतरीन है
acche vishya par umda aalekh !
abhinandan !
जन्माष्टमी की हार्दिक बधाई.
( Treasurer-S. T. )
अभी अभी एक ब्लॉग पर गये थे जिसमे देश के पुनः विखंडित होने की आशंका जताई गयी थी. इधर आप ने परिवारों की समस्या रखी. हमारे दृष्टिकोण से यदि देश को बचना है तो प्रयास तो घर से ही प्रारंभ करना होगा. सुंदर आलेख. आभार.
विभाजन का दर्द जिसने झेला है ...........वो ही उसको समझ सकता है............ मैं नहीं कहता आपस में बिछुड़ना विभाजन नहीं है............. पर वो विभाजन कुछ हद तक हमारे द्बारा होता है.......... पर देश के विभाजन और उस त्रासदी को झेलने वाले से पूछो तो वो बताएगा विभाजन क्या होता है............... आपका लेख दिल को choota है............ samvedan है लेख में
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