Monday, August 10, 2009

एक उम्र के बाद ...


सुनयना मुझे याद है , उस दिन में लोकल में थी , घर जाने की जल्दी हो रही थी क्योंकि बेटी का जन्म दिन था , उसने कहा था -माँ !! केक लेकर आना , मैने ऑफिस के सामने वाली बेकारी से केक लिया और स्टेशन की ओर दौड़ गई । सात बज रहा था , भीड़ थी , हम अधिकांश लोग रोज वाले ही थे , दो चहरे नए से थे , शायद घूमने वाले होंगे , ट्रेन में चढ़ते समय बड़े आराम से चढ़ रहे थे , लोकल में चढ़ने का अभ्यास नही था । माँ बेटी लग रहीं थीं । मेरे पास आकार खडीं हो गईं , बार -बार पूंछ रही थीं , अब क्या आने वाला है , शायद डर था उनका स्टेशन न निकल जाए । तभी हमारी बोगी के पीछे वाली बोगी में जोर से धमाका हुआ ।

लोगों के परखच्चे उड़ गए , एक जोर के झटके के साथ मेरा बैग बाहर फिक गया , केक बिखर गया , मैं,

खिड़की पर अटक कर लोगों के बीच में फंस गई , पैर फैक्चर हो गया था , किसी तरह जब , कुछ समझ आया , भगदड़ मच गई थी सब चीख रहे थे , वे माँ बेटी पटरी के उस पार मृत सी पड़ीं थीं , मेरा कलेजा हिल गया । सब लोग कह रहे थे ब्लास्ट हुआ है , आतंकी हमला है , मेरी तो साँस ही अटक गई ।

किसी तरह मुझे अस्पताल लाया गया , घर पर फोन किया गया उससे पहले ही पति अस्पताल पहुँच गए , मेरी बच्ची केक का इंतजार ही करती रही । दो महीने तक , मेरी बेटी ने सेवा की । पर मैं, हर दिन उन माँ बेटी को कभी अखबार, तो कभी दूर दर्शन पर ढूंढती रही ।

ओह !! उत्तमा !! कुछ हादसे इतने दहशतजदा कर जाते हैं कि जिंदगी भर के लिए खौफ का साया पीछा नही छोड़ता । फ़िर जीवन की आपाधापी में हम इस कदर मशगूल हो जाते हैं कि चाहे कहीं भी हों , भय हमारा साथ नही छोड़ता । पता है अगर मैं तुम्हारी जगह होती तो , कब की बिखर गई होती , तुम कितनी , हिम्मत वाली हो । आज भी मेरे साथ घूम रही हो , कोई डर नही है । देखो तो ! पटरियों पर रेल बराबर दौड़ रही है या नहीं , अच्छा बच्चू !! मुझे ही बना रही हो , हमारे सफर की तरह हमारी जिन्दगी , और तुम्हारी पटरियां , खेत , खलिहान , पेड पौधे , नदियाँ सब दौड़ रहे हैं । तुम एक बहादुर नारी हो , हादसों से उबरना तुम्हें आता है , आज भी तुम उन माँ बेटी को खोजती हो । किसी से डोर बाँध लेना कोई आसान बात नही होती । क्यों न अपन , चाय पीयें , हाँ अच्छा , विचार है ।

उत्तमा , चाय की चुस्कियां ले रही थी और मैं , खिड़की से बाहर धुरी पर घूमती दुनिया के साथ मंथन कर रही थी , तभी किसी ने ट्रेन की जंजीर खींच कर रोक दिया ......

क्रमश : ........

रेनू .....

6 comments:

दिगम्बर नासवा said...

kahaani दिलचस्प है .......... आगे का इंतज़ार रहेगा

M VERMA said...

बेहद मार्मिक और कौतूहल भरा
आपकी लेखनी का प्रवाह अच्छा लगा.

Udan Tashtari said...

कुछ हादसे इतने दहशतजदा कर जाते हैं कि जिंदगी भर के लिए खौफ का साया पीछा नही छोड़ता---सच कहा!!

बेहतरीन प्रवाह के साथ अगली कड़ी का इन्तजार.

MUMBAI TIGER मुम्बई टाईगर said...

आगे की कडी का बेसब्री से इन्तजार।

आभार/मगलकामनाए

हे प्रभु यह तेरापन्थ

विनोद कुमार पांडेय said...

marmikata bhari kahani..
kautuhal paida karati hai aage padhane ke liye..

intzaar rahega..agali kadi ka

Atmaram Sharma said...

बेहतरीन, अगली कड़ी का इंतजार....