Friday, March 20, 2009

फिर आया मौसम ....लात -घूंसों का .


फिर से बिगुल बज चुका है , राजनैतिक अखाडे में धुरंधरों के उतरने का । पूरे देश में गहमा -गहमी बड गई है । हर तरफ सरकारी ऑफिस में सन्नाटा पसरा हुआ है । बाबु जी हाथ -पर हाथ डरे बैठे हैं , रोज का हिसाब गडबडा गया है । बड़ी मुश्किलों से तबादलों कीलिस्ट हाथ लगी थी लेकिन आचार संहिता ने सब पर पानी बरसा दिया । जो भी विकास कार्य सरकार की देख रेख में चल रहे थे , वहीँ के वहीँ जाम हो गए , मानो सरकार और नगर निगम या नगर पालिका विष -अमृत खेल रहे हों । पर एक बात है जो भी बड़ा नेता चुनावी दंगल में कूदने राजधानी से पधारता है , उसका आवास दुलहन की तरह सजाने का काम बदस्तूर जारी रहता है ।

एक ओर लोग प्यासे लड़ रहे हैं , बच्चों को पढने के लिए बिजली नहीं मिल रही वहीँ शहरों में दिन में भी लट्टू चमकता रहता है । हर तरफ घास , पौधे लगाकर हरियाली जमाई जा रही है , वहीँ सड़कें खोदकर दगडे बना दी गईं हैं ।

हाँ , तो बात हो रही थी चुनावी अखाडे की । जाने कितनी पार्टियाँ हैं , हजारों उनके नेता , मंत्री , सिपाही , सलाहकार और कार्य -करता ।सबके सब अपना जोर आजमाने के लिए पैंतरे बाजी करने में लगे हैं । विरोधी पार्टी के नौसिखिये नेता को सबक सिखाने के लिए दुनिया भर के जतन किये जा रहे हैं । नीचा दिखने का कर्म इतना घातक होता है कि चरित्र हीनता की हदें भी पार हो जातीं हैं । तथाकथित साध्वी भी अपनी मक्कारी को जब -तब दिखाती रहती है । शर्म और हया अपना वजूद को चुकी है । इन राजनेताओं की डिक्सनरी में आत्म सम्मान नाम का शब्द होता ही नहीं है । सबके सामने थूकते हैं और चाट जाते हैं । छिः छिः जिसे अंग्रजी में शिट कहते हैं ।

हे !! ईश्वर , हमारे देश का क्या भविष्य होगा ?करोडों रुपये जो विकास में लगाने चाहिए , पानी की तरह बहाने के लिए चुनावों का सहारा लिया जाता है । हत्या , अपहरण और कई तरह के चुनावी अपराध चरम् पर पहुँच जाते हैं । कुछ विद्यार्थियों ने इस चुनावी मिशन के लिए उपाय सुझाये हैं -

१- राज नेता के लिए विशेष शेक्षणिक योग्यता होनी चाहिए ।

२-आपराधिक आचरण न हो ।

३-मंत्री बनने के लिए विषय का पूर्ण ज्ञान होना चाहिए ।

४-हर पांच साल में नेता पद के लिए रिक्तियां प्रकाशित होनी चाहिए ।

५-हर आम व्यक्ति को अधिकार हो कि वह आवेदन दे सके ।

६-आय से अधिक धन -सम्पदा जोड़ने पर छापा भी पड़ना चाहिए ।

७-विशेष सुरक्षा `लेने का अधिकार किसी को न हो , जब जनता के बीच जाने से उन्हें मौत का भय है तब त्याग पत्र देना उचित हो ।

८-चुनाव आयोग और सरकार को इस विषय पर गंभीरता से विचार करना चाहिए ।

अब आम जनता का क्या होगा , लेकिन जनता को हक़ होगा वह धूर्त व्यक्ति को घर का रास्ता दिखा सके । हमें अपनी नींव को मजबूती देने के लिए प्रयास तो करना ही चाहिए ।

सब नेता व्यापारी हैं , अपने स्वार्थ के लिए जनता का हनन करते हैं , उन्हें तो चुनावी मौसम का इन्तजार रहता है । अपने ही लोगों पर लात -घूंसों को बरसाने का ।

रेनू .....


1 comment:

Udan Tashtari said...

ये मौसम तो आना ही था!!