Monday, December 15, 2008

मातमपुर्सी का सच

किसी भी जानकर के घर गमीं हो जाय तो पडौसी , रिश्तेदार , जानकार मित्र , सब मातमपुर्सी के लिए जाते हैं , यह बताने के लिए कि हम भी उनके गम मैं शामिल हैं । इसी खानापूर्ति के लिए एक बार महिलाओं के साथ अफ़सोस करने जाना पड़ा । हालाँकि मृत सज्जन बुजुर्ग थे लेकिन घर का सदस्य चाहे बिस्तर मैं क्यो न पड़ा हो , अन्तिम साँस तक सेवा पाने का हक़दार होता है । घर मैं दाखिल हुई तो , बडे हॉल मैं जमीन पर चादर बिछे हुए थे ,सामने एक चोकी पर मृतात्मा का जवानी का फोटो लगा था , शायद अभी ही बनवाया गया था , एक पीतल के दीपक मैं बाती जल रही थी , कुछ अगरबत्ती की राख भी पड़ी थी , शायद रात भर जलाई गई थी , घर मैं अजीब सी खामोशी छाई थी , करीब ३० महिलाओं के होते हुए भी रिक्तता का भान हो रहा था ।


मृतात्मा की पत्नी एक कुर्सी का सहारा लिए सुबक रहीं थीं , उनकी बेचारगी और पीड़ा का भान इसी बात से हो गया कि वे कभी - कभी गहरी साँस छोड़कर सुबक पड़तीं थीं । मैं भी अपने गीले किनारे दुपट्टे से पौछ लेती थी , थोडी देर के सन्नाटे के बाद मित्र मंडली की पत्नियों ने ही चर्चा करनी शुरू की , कितने खुश मिजाज थे भाई साब , सबका कितना ध्यान रखते थे , अन्य महिलाएं समर्थन मैं सर हिला रहीं थीं , तभी दूसरी बोल पड़ी ... यार बोलते कैसे थे मानो दिन मैं भी चड़ा रखी हो , और धीरे से मुस्कराहट का वायरस छोड़ दिया गया । पत्नी पास ही बैठी हैं शायद सुनती होगी अपनी सहेलियों की खुसफुसाहट । उनके दिल मैं जो मंथन चल रहा है उसे और कोई क्या जाने , उन्हें परवाह भी नहीं थी ।


दूर बैठी एक महिला की ओर इशारा करती एक महिला बोली ... उस महिला के दो बच्चों मैं से एक अपाहिज है , किसी ने कहा सब करनी का फल है , क्या पता कितने पाप किए होंगे , जो सब भोग रही है ओर न जाने क्या - क्या .... तभी पास बैठी महिला के कान पर मुंह लगाकर बोली ... इन्हें देख रही हो जो हरे कांच की चूडियाँ पहने हैं , अभी ६ महीने हुए हैं पति को मरे , देखो इनका रंग , इस बात का भी होश नही कहाँ जाना है , हाँ , सच कहा ... ओर समर्थन मैं आवाज आने लगी । थोडी देर बाद जाने क्या हुआ ख़ुद ही बोल पड़ीं ... अरे !! ठीक ही है , पति मर जाय तो क्या जीना छोड़ दें , शायद अपने भविष्य की कल्पना कर ली होगी । किसी को हक़ नही कुछ कहने का , फ़िर समर्थन मैं सर हिल गए ।


शायद दूसरी बार इस तरह की खामोशी मुझे नसीब हुई थी , जहाँ हौले - हौले महिलाएं अपनी सोच को उजागर कर रहीं थीं । घर की बुजुर्ग महिलाएं भी काम ओर आपसी उपहास मैं व्यस्त थीं । पर सब कुछ मरियादा मैं चल रहा था , तभी किसी ने कहा घर की महिलाएं स्नान कर लें , दो लड़कियां उन्हें पकड़ कर ले गई , अन्य महिलाओं के साथ बंधन था जब तक पुरूष शमशान से लौट कर नही आ जाते , उन्हें बैठना पड़ेगा , पुराना ग्रुप एक पास आ गया , पैर फैला कर बैठ गईं , उम्र के इस पड़ाव पर घुटने साथ छोड़ रहे हैं , कमरे का माहौल बदल गया , सब आराम मैं आ गईं ।

अरे !! भाभी , एक बार याद है आप पिक्चर जाते समय चप्पल पहनना भूल गईं थीं , हाँ , पता है , उस समय लड़कपन था , हम जब स्कूटर से नीचे उतरे तब पता चला की चप्पल तो पहनी नहीं , सब हंसने लगीं । पास -पास आतीं गईं , भाभी , वो भी क्या दिन थे , एक बार याद है , भइया पान खाने रुक गए , स्कूटर चलाई और निकल लिए , हम ऑटो से घर आए । बिडला मन्दिर के सामने सीडी पर बैठ कर यह लोग दारु पीते थे , तब सब जंगल था कोई पुलिस वाला भी नहीं आता था , और बच्चों की खेरियत से लेकर दुःख - दर्द की इन्तहा तक महिलाएं अपने कड़वे मीठे पलों को इस अथाह पीड़ा के समय भी बांटती रहीं इस खौफ के साथ की मेरे साथ ऐसा कभी न हो ।

कई महिलाएं इस दर्द को ख़ुद से जोड़कर ले रहीं थीं और दिल की तहों से उनके आंसू टपक रहे थे ।

मातमपुर्सी की खौफनाक सच्चाई मैं भी हम कितने नादाँ बने रहते हैं । जीवन की सत्यता को मानना नही चाहते , घर के यूवा रिलैक्स थे , बच्चे अबोधतावश अनजान से थे , एक वीरानी से घिरे अहसास के साथ मैं वापस आ गई । समझ जाउंगी अगर महिलाएं मातमपुर्सी के लिए गईं हैं तो क्या चल रहा होगा ......

रेनू शर्मा .....

2 comments:

विक्रांत बेशर्मा said...

रेनू जी,

आपकी पोस्ट बहुत अच्छी लगी,कई बार इस सच आस पास से मैं भी गुज़रा हूँ!मेरा ये मानना है की हर किसी को अपने हिस्से के दुःख झेलने पड़ते हैं,आस पास के लोग उनके दुःख में शामिल होते हैं पर पूरी तरह से नहीं !

Renu Sharma said...
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