Wednesday, July 23, 2008

यह शहर

कुहासे में घिरा ये शहर ॥
फूल में छूपीओस
की बूँद सा
दूर पहाडी से देखा ,
तोअँधेरे में
दिया साजलता लगा ॥
कहीं दूर नील गगन से
एक कंदीलज़मीं पर
उतार दिया सा लगा
अपलक निहारती रही ॥
यहाँ की ज़मीं पर
तारों का वृन्द
उतरता सा लगा ॥
कुहासे में घिरा यह शहर
कली के मुखाग्र पर लगे
मकरंद सा लगा ॥
घाटी में बौराए
आमों परमंडराते
भवरों के समूह सा
वन लता को
आलिंगन करता सा लगा ॥
मंदिर में बजती घंटी
मस्जिद से उठती अजान
गुरूद्वारे से आती अरदास
औरचर्च में जलती बाती सा
कुहासे में घिरा यह शहर
पाक दुआओं का
समंदर सा लगा ॥
अनंत के आवरण से घिरा
यह शहरदिव्य सुरभियों से
सुगन्धितज़मीन पर उतर आया
स्वर्ग सा लगा ॥
कुहासे से घिरा यह शहर …!!
रेणू शर्मा

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