नारी के रूप कोई भिन्न नहीं हैं ,
किसी एक अवतार मै ही हम
सभी प्रकार के अक्स देख
सकते हैं । गीता भी येसा ही एक चहरा है .
गीता के उपदेश सी सच्ची ,
धुले मन वाली ,
साफ सुथरे दिल में ,
सबको बसाने वाली ,
जवानी में जिंदा इमारत सी ,
दीमक लगी जड़ वाली,
नीम के पेड सी खोकली,
ज़िंदगी जीने वाली ,
सरपट दौड़ती दुह्पयिया सी ,
रोज़ दरवाज़े पर दस्तक देती है ...
मुस्कराती , शर्माती और
दहशत जदा होती है ॥
घर का काम अपना सा समेटती है...
कल क्यों नही आई ?
पूछने पर सुबक पड़ी,
दबदबायी आंखों से मोती बिखेरती,
कंधे पर सिर रख कर,
सिसक पड़ी ,उसे समेटा,
सीने से लगा लिया,
उसकी पीडा को
अपना बना लिया ...
तब मूकबधिर सी
घाव दिखाती ,
काम में जुट गयी ...
हथप्रभ सी मैं,
स्त्री का अक्स ॥
देख रही थी ...
-रेणू शर्मा
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