Sunday, March 7, 2010

शक्ति का उपहास

आज हम पत्रिकाओं , समाचार -पत्रों और न्यूज चैनलों पर चिल्ला -चिल्ला कर जिस महिला शक्ति का बखान कर रहे हैं , वह एक ढकोसले के अलावा कुछ नहीं है , अगर , नहीं छापेंगे या बोलेंगे तो बयार के साथ बहेंगे कैसे ? पचासों भारतीय महिलाओं के कारनामों को कागजों पर चस्पा कर दिया गया लेकिन , सब जानते हैं ,कि महिला देहरी से बाहर कदम तब , रखती है जब , सर पर आ पड़ती है , कम से कम भारतीय महिला तो ऐसी ही है , अब , सोच बदल रही है . तो , क्या हम यह समझने लगें कि सिनेमाई औरतें अब , जिस्म खोलना बंद कर देंगी ? क्या - राजनैतिक पार्टियाँ सोनिया जी को विदेशी महिला सोचना छोड़ देंगी ? क्या -होटलों , मेलों और शादियों में महिलाएं ठुमके लगाना बंद कर देंगी ? या चौराहे पर भीख मांगना बंद कर काम करने लगेंगी ? या काम से घर लौटती महिला को लूटा नहीं जायेगा ? क्या -अब , किसी महिला का बलात्कार नहीं होगा ? या स्वयं महिला अब , अपने गर्भ पर छुरी नहीं चलवाएगी ? बेटी को पैदा होने से पहले ही मारा नहीं जायेगा ?
कहना , दिखाना , लिखना , बोलना बड़ा आसान है , लेकिन अमल में लाना बड़ा मुश्किल है , चौक - चौराहों पर खड़े ठलुआ पुरुष भी महिला आरक्षण बिल का समर्थन करते मिल जायेंगे ,लेकिन भीतर से महिला को वे लोग किस नजरिये से देखते हैं , यह भी तो , सभी जानते हैं . उनकी पत्नियाँ घर कि चाकर , और घर सँभालने की मशीन के अलावा कुछ अधिक नहीं होतीं , पुरुष तो , साहित्य गोष्ठी में भी महिला के लावण्य पर कसीदे कसते हैं , महिला शक्ति पर व्याख्यान देतें हैं , क्या - कभी अपनी महिला को उन्होंने समझने का प्रयास किया ? क्या -कभी पत्नी को भरे समाज में सम्मानित किया ? क्या - कभी अकेले में भी पत्नी से कहा - कि तुम मेरी शक्ति हो ? 
बाहरी दिखावा करने के बाद , घर में पत्नी एक भडांस निकलने का साधन के अतिरिक्त कुछ नहीं , वह सामाजिक , पारिवारिक , आर्थिक , व्यापारिक और पर्सनल विकार उड़ेलने का बर्तन ही है , फिर भी , महिला सहज रूप से परिवार का ताना -बाना बुनती हुई आगे बढती है , पुरुष हजारों नकाब पहने हुए एक बहुरूपिये के समान ही व्यवहार करता है , जिस्म फरोशी में पकड़ी हुई कमसिन बालाओं को देखकर , कह ही देगा - अरे !! इतना सब कौड़ियों के मोल मिलता है ? उस पल भूल जाता है कि उसके घर में भी बेटी है .
तो ऐसे समाज के बुद्धिजीवी पुरुष क्या - सम्मान करेंगे किसी महिला का ? जब वे घर में , किसी महिला कि शक्ति को नहीं समझ सकते तो , अन्य किसी स्त्री की क्या बिसात ? इन्हें तो , नारी की हर उन्नति में खोट नजर आता है , महिला शक्ति का उपहास करने वाले लोगों को समझना चाहिए कि महिला का साथ तो , सृष्टि के आदि से है और अंत तक रहेगा , फिर मान क्यों नहीं लेते कि महिला शक्ति का पुंज है , तभी तो , रानी लक्ष्मी बाई , कल्पना चावला और महादेवी वर्मा जैसी नारियां भी इस धरती पर अपना निशान छोड़ पाई, शक्ति का पतन करोगे तो , पाप के भागी ही बनोगे , बौद्धिक उन्नति नहीं कर पाओगे .
शक्ति को सुरक्षित करो , अपने ओज से दिव्यता में परिवर्तित करो और आतंक , पाप , अपराध से इस धरती को मुक्त करो , यही महिला आरक्षण का सार है , यही महिला शक्ति का सम्मान है . 


रेनू शर्मा ... 

2 comments:

vandana gupta said...

renu ji aapki post ne to nishabd kar diya.........aapne bilkul sahi tarike se satya ko shabd diye hain ...........sach to yahi hai ki jab tak samaaj ki mansikata nhi badlegi tab tak koi fayada nahi ye dikhawa karne ka.
maine bhi kuch isi ke bare mein likha hai fursat mile to padhiyega.
http://redrose-vandana.blogspot.com
http://vandana-zindagi.blogspot.com

शरद कोकास said...

यह बहुत सहज और स्वाभाविक आक्रोश है । मेरे पास शब्द नहीं है इन पर कोई प्रतिक्रिया व्यक्त करूँ।